SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ S .INOIMINILOUD.NUSHRIDUNIA NHANIRUDHATSummmunusuaHOURS माली सोमदर और मजनबोर। [१३ नहीं था ! अंजनने कहा-'आमो भाई सोमदत, बैठो यह विमान बन गया ।' सोमदत्त सीधे से बैठ गया; परन्तु ज्योंही विमान उपरको उठा कि वह घबड़ाने लगा और ऐसा घबड़ाया कि अंजनको विमान चलाना रोकना पड! ! किन्तु अंजन निशङ्क और अभय था, उसे विमानमें बैठकर उडनेमें जरा भी डर न मालूम हुआ। विगन बन गया, अंजन बैठकर उसमें उडने भी लगा; परंतु फिर भी सोमदत्त अपनी मानसिक दुर्बलताके कारण उससे लाभ न उठा सका । सोमदत्त दुखी था और अंजनको मलाल था। 'अरे ! अभी उठा ही नहीं ! भाई, खोल किवाड़ !' 'अरे भाई सोमदन ! सुनता ही नहीं ! सोता रहेगा क्या ? देख कितना दिन चढ़ आया ।' • कौन ? भाई अंजन ? इतने तड़के कहां ?'' ' कहां कहा ? उठो भी-चलो दिलकी मुराद पूरी होगी ?" 'कहां चलूं।" • जहा मैं कहूं । जल्दी नहा-धो लो । मैं यहां बैठा इं।' 'अच्छा'-कहकर सोमदत्त माली नहाने चला गया और नहा-धोके वह लौटा तो उसने देखा कि उसका मित्र अमन बैठा उसका इन्तकार कर रहा है। वह अटपटा होकर बोला-'भाई' भाज तो तुम पहेली बुझ रहे हो। आखिर कुछ तो बताभो, कहां चढूं?'
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy