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छठा जन्म
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दिया। उसने कहा-'रानी, लो यह हार गले मे पहन लो।' रानी बड़ी चतुर थी । वह पहले से ही सतर्क भी थी। राजा का पड्. यंत्र वह तत्काल समझ गई । उसने उसी समय भावपूर्वक नमो. कार मंत्र का जाप किया और धर्म के प्रबल बल का भरोसा करके पिटारा खोला। सर्प महामंत्र के जार के प्रभाव से सुन्दर मुक्ताहार बन गया। रानी ने अत्यन्त प्रसन्नता के साथ वह हार गले में धारण किया । राजा ने यह अलौकिक घटना देखी, तो वह चकित रह गया । अब उसे रानी के धर्म की सत्यता का विश्वास हुआ। उसने सोचा-जब रानी के थोड़े-से प्रशस्त पाठ से भयंकर भुजंग भी भपण बन सकता है, तब विशेष पाठ से आत्मा वा लोकोत्तर कल्याण क्यो न हो जायगा ? ऐमा विचार कर, राजा ने वीतरागधर्म पर पूर्ण श्रद्धा प्राट की। यह संवाद जब नगर मे पहुंचा, तब नागरिक जन भी पहले विस्मित होकर फिर वास्तविक धर्म की बाह | वाह करने लगे। इस प्रकार धर्म की खूब प्रभावना हुई । इस प्रभावना के कारण राजा के साथ-ही-साथ हजारो नगर निवासियो ने जिनमार्ग अंगीकार क्यिा । . प्रभावना से प्रभावित हो, अनेक प्राणी वास्तविक धर्म को प्राप्त कर, मुक्ति पथ के पथिक बन जाते है । अतएव तन, मन. धन, ज्ञान, विज्ञान, आचार-विचार आदि अपनी शक्ति के द्वारा धर्म की महिमा बढ़ाना प्रत्येक सम्यक्त्व-धारी का प्रधान लनरण है। इस प्रभावना के पथ मे कोई अनुदार, विश्नसंतोपी जन बाधाएँ खड़ी करे, तो भी निरन्तर अग्रसर होते जाना, वीरों का कर्तव्य है। विघ्न-बाधाओं से भयभीत होकर अपने उहिष्ट पथ से विचलित हो जाने वाला कातर नर, सफलता की अंतिम सीढ़ी पर