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पार्श्वनाथ
प्रगट हो चुका है तो उसका क्रोध और तेजी से भड़क उठा । उसने कुमार के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । कुमार भी सच्चा क्षत्रिय था और युद्ध विद्या मे पूर्ण निपुण था । वह शूरवीरों की तरह सामना करने को कटिबद्ध हो गया । वह बस्ती के बाहर गया और व्यूह-रचना कर डाली। राजा जितशत्रु को युद्ध के लिये सन्नद्ध देख उनके मंत्री ने पूछा, देव, आज किस पर भ्रकुटि चढ़ाई है ? राजा बोला – पूछो मंत्री जी, अनर्थ हो गया कुमार चरवाहा है। उसने धोखा देकर राजकन्या ग्रहण करली है ।
मंत्री प्रवीण था । उसने महाराज को वास्तविकता की खोज करने की प्रार्थना की और तब तक युद्ध की तैयारी रोकढ़ी । अंत मे सत्य सामने आया । कुमार के वास्तव मे क्षत्रिय राजकुमार होने का प्रबल प्रमाण मिलने पर राजा लजाया, अपनी करनी के लिए पछताया और कुमार ललितांग से क्षमायाचना ही नहीं की वरन् उसे पूरे राज्य का अधिपति बना दिया। उधर ललितांग के पिता महाराज नरवाहन को पता चला तो वह भी अपने प्रिय पुत्र से मिलने चल दिया। अन्त मे नरवाहन और जितशत्रु दोनों ने संसार से विरक्त हो दीक्षा ग्रहण की और ललितांग दोनों राज्यों का स्वतंत्र स्वामी बना। यह है धर्म का प्रभाव ! घोर व्यथाएँ सहन करके भी ललितांग कुमार ने अपने धर्म की रक्षा की - धर्म के लिए राजपाट यहाँ तक कि नेत्रों का भी परित्याग निया तो धर्म ने भी उसकी रक्षा की और पुण्य के प्रताप से उसे राजसी ऐश्वर्य की प्राप्ति हुई ।
मुनिराज का यह उपदेश सुनकर श्रोतागण अत्यन्त हर्षित हुए और महात्मा सस्मृति के आनन्द का तो पार ही न रहा । जैसे