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पहला जन्म
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एक दिन भीख मांगने के लिए वह चम्पा में जा पहुंचा । कुमार ने सज्जन को तुरंत पहचान लिया । कुमार भले का फल भला ही मानता था अतः सज्जन के क्रूरता पूर्ण व्यवहार को भुलाकर भी उसने उसे आश्रय दिया। पर सज्जन ने अपनी दुष्टता न छोड़ी। एक दिन चुपके से वह राजा जितशत्रु के पास जा पहुंचा और उससे बोला-'आपके जामाता ललितांग मुझ से अत्यन्त स्नेह इस लिए करते हैं कि कहीं उनके पाप की पोल न खुल जाय । असली राजकुमार तो मै हूं । वह मेरा चरचादार है ।' राजा ने यह सुना तो उसका रोम रोम क्रोध के मारे जलने लगा। सज्जन जब चला गया तो उसने जल्लादों को बुलाया। उन्हें समझाया'आज रात को ठीक ग्यारह बजे जब मै कुमार ललितांग को अपने पास बुलाऊँ तो अमुक स्थान पर उसका सिर धड़ से जुदा कर देना । खबरदार इसका भेद किसी पर प्रकट न होने पावे। ' रात को नियत समय पर एक राजकीय पुरुष ललितांग के पास आया और कहने लगा-कुमार, अभी इसी समय आपको महाराज ने याद किया है। कृपा कर मेरे ही साथ पधारिये।' कुमार कुछ दुविधा मे पड़ गये। इस समय ऐसा कौन-सा काम
आ पड़ा है। अन्त में उसने सज्जन से कहा-'भाई, जरा तुम्ही महाराज से मिल आओ। देखो क्यों उन्होंने मुझे याद किया है ? सजन उस पुरुष के साथ हो लिया । किन्तु राजाज्ञा के अनुसार बीच ही में जल्लादों ने उसे ललितांगकुमार समझ कर कत्ल कर दिया। सच है, पाप बहुत दिनों तक नहीं छिपता-वह तो शीघ्र ही अपना फल देकर प्रकट हो जाता है।
प्रातःकाल हुआ। राजा ने ललितांग को सकुशल देखा और उसे यह भी मालम हो गया कि मेरे पड़यंत्र का रहस्य प्रजा पर