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पाश्वनाथ हिस्सेदार बनेगे ? यदि नहीं तो हे भोले जीव ! अपना आपा विचार | आत्मा के सिवाय और किसी मे अनुराग न कर । धर्म का सचय कर जिससे आत्मा का कल्याण हो।
संयोग-वियोग में, उत्पत्ति-मरण मे, तथा सुख-दुख मे प्राणी के लिए दूसरा कोई भी सहायक सखा नहीं है । इस प्रकार चिन्तन करना एकत्व भावना है।
(४) संसार भावना दु.ख रूपी दावानल से क्षुब्ध, चतुर्गति रुप भयंकर भवरो स व्याप्त, इस ससार-सागर मे प्राणी दीन-हीन अनाथ होकर जन्मते-मरते रहते है। यह जीव कभी त्रस, कभी स्थावर होकर, कर्म रूपी बेड़ियो से जकड़ा हुआ कभी तिर्यञ्च का शरीर धारण करता है,कभी मनुष्य होता है, कभी पुण्य के योग से देव बनता है और पुण्य क्षीण होने पर फिर तिर्यंच और नरक गति के अत्यन्त घोर और असह्य दुःख झेलता है।
स्वर्गीय सुखो में मस्त देवता रोता-पुकारता हुआ पशु वन जाता है और पशु देव बन जाता है । जाति मद में उन्मत्त ब्राह्मण, चांडाल हो जाता है और चाडाल क्रियाकांडी ब्राह्मण बन जाता है।
चारों गतियों मे अनन्त वार जन्म ले लेकर इस जीव ने कौनसी योनि नही भोगी ? कौनसी पर्याय है जिसे यह न भोग चुका हो ? कोन ऐसा प्राणी है जो शत्र, मित्र, पिता, पुत्र आदि सब कुछ न बन चुका हो?
ओह ! इस संसार से क्या सार है जहाँ बड़े से बड़ा सम्राट सर पर तत्काल कीडा-सकोडा वन जाता है। यह दुःखों का गस