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पार्श्वनाथ चित व्यवहार क्यिा है ? क्या आप मुझे वताने की कृपा करेगे?
कलिगराज-जी हां, बताने के लिए ही तो कह रहा हूँ । आपने राजकुमारी प्रभावती के साथ होने वाले अपने शुभविवाह का मुझे आमन्त्रण नहीं दिया। क्या आप मुझे शामिल न कीजिएगा?
कुमार-(मुस्करा कर ) 'मूल नास्ति कुत. शाखा?" जिसका मृल ही नहीं उसकी शाखा कहा से आएगी? ऐसा अवसर आने की मुझे तो कोई संभावना दिखाई नही देती है । आप कहे तो निर्गन्ध-दीना-उत्सव का आमन्त्रण आपको पेशगी दे सकता हूँ। __ कलिंगराज-नहीं कुमार, ऐसा न होने पाएगा । मै आपके पाणिग्रहण-महोत्मव मे ही सम्मिलित होऊँगा। ___ इस प्रकार हाम्य-विनोदमय वार्तालाप के पश्चात कलिंगगज कुमार के पास से विदा हुआ। कुशस्थल पर युद्ध की जो भीषण घटनाएँ मॅडरा रही थीं वे पार्श्वकुमार के प्रभाव स्पी पवन सेना भर मे नितर-बितर होगई। कशस्थल अव कुशल. पल बन गया। मवकी जान मे जान आई । सभी एक मुह स फमार की प्रगमा ररने लगे। जनता के समूह के समूह कुमार का दर्गन पाने को उमड पड़े। सभी के हृदय उल्लास से उछल रहे थे। सभी उमंगों से भरे हुए थे । राजा प्रसेनजित के आनन्द का नो पारीन था।
विवाह र नाद महाराज प्रसेनजित अपनी कन्या प्रभावनी प रमार की सेवा में उपस्बिन गुरा । यथोचिन