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अपूर्व विजय
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अभूतपूर्व विजय हुई है । कुमार ! इससे जो अद्भुत लाभ मुझे हुआ है वह अब तक किसी चढ़ाई में नहीं हुआ।
कुमार-'कौन-सी विजय और क्या लाभ ? मै आपका आशय नही समझा । कृपया स्पष्ट कीजिए।'
कलिंगराज-इस चढ़ाई से मुझे दो लाभ हुए है। कुमार ! प्रथम तो यह कि मैने अनेक बाहरी शत्रुओं पर विजय पाई थी पर हृदय में डट कर बैठे हुए दुर्भाव रूप शत्रु का मै बाल भी वांका न कर सका था। आज इस युद्ध-भूमि मे मैने उसे पराजित कर दिया है। यह मेरी अभूतपूर्व विजय हुई है।
कुमार-'दूसरा लाभ क्या है ?
कलिंगराज-'दूसरा अद्भुत लाभ है आपका दर्शन होना। न यह चढ़ाई करता न आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता । इस प्रकार दोहरा लाभ लेकर मै जा रहा हूँ।'
कुमार-यह आपकी सज्जनता है। मै तो न्यायमार्ग का साधारण पथिक हूँ। आपके पक्ष में न्याय होता तो निश्चित समझिए मै आपके साथ होता और महाराज प्रसेनजित का विरोध करने मे तनिक भी संकोच न करता । आपने भयंकर नर-संहार टाल दिया, इस श्रेय के भागी आप ही है।
कलिंगराज-आपका सौजन्य अनुपम है । आपने मुझे जो सद्बुद्धि दी उसी से यह नर संहार टल गया है । अव मुझे जाने की आज्ञा दीजिए।
कुमार-आपका मार्ग शुभ हो । पधारिये ।
फलिगराज-मगर मैं थोडा-सा विपाद भी साथ लेकर जा रहा हु कुमार।
कुमार वह क्यो कलिगराज ? मेने आपके या मोह प्रम.