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पाँचवाँ अध्याय । आकर सबका निर्वाण महोत्सव किया; तथा प्रभुके गुणोंका स्मरण कर वे सब अपने अपने स्थानको चले गये । एवं वहॉ और और महापुरुष जो महोत्सवमें शामिल हुए थे, वे भी प्रभुके गुणोंका स्मरण करते हुए अपने अपने नगरोंको गये । इस तरह आदि जिन करके द्वारा स्थापित कौरव-वंशमें इन्द्रों द्वारा पूज्य श्री शान्तिनाथ प्रभुका जन्म हुआ । शान्तिनाथ प्रभुके चरण-कमलोंमें चक्रवर्ती भी आफर नमते हैं। वे गुणोंके भंडार और गुणवालोंके द्वारा पूजे जानेवाले हैं; काम आदि शत्रु
ओंके नाशक और विजय लक्ष्मीके पति हैं। चक्ररत्नके स्वामी हैं, धर्मतीर्थके प्रवर्तक तीर्थकर हैं। उनके सुन्दर रूपको देख कर जगत्पति भी मोहित हो जाते है । वे कीर्ति, स्फूर्ति, सुमूर्तिके सदन हैं; एवं नीतिविद्याके आलय हैं, चक्रवर्ती है, कामदेव हैं; और उत्तम, एवं सार्थ तीर्थके चलानेके कारण तीर्थंकर हैं। तात्पर्य यह कि वे दक्ष तीन पदवीके धारक हैं तथा जिनका पक्ष सचा और हितैपी है । वे शान्तिके स्वामी शान्तिनाथ प्रभु मेरी रक्षा करें।
शान्तिनाथ प्रभु शान्तिके कर्ता और शान्तिके स्थान हैं। उनके निमित्तसे सत्पुरुप शान्तिको पाते हैं । वे मोक्षके दाता और स्वयं मोक्ष मार्ग पर चलनेवाले हैं। उनके निमित्तसे जीवोंको सैकड़ों सुख मिलते हैं। उनके मोहका नाश होता है
और उन्हें उत्तम उत्तम गुण प्राप्त होते हैं। उन शान्तिनाथ प्रभुके लिए मेरा नमस्कार है । मैं उन शान्तिनाथ स्वामीको अपने मनोमन्दिरमें विराजमान करता हूँ। वे मुझे सुख दें।
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