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पाण्डव-पुराण |
सहने के लिए असमर्थ हो चिल्लाने लगा । उस वक्त उसकी रोनेको आवाजको उसकी स्त्रीने सुना और वह उसी समय मेघरथ के शरण में आई तथा पतिके जीवनकी भिक्षा माँगने लगी | मेघरथने तव शिलापरसे अपने वलको बिल्कुल हटा लिया । यह देख कर प्रियमित्राने मेघरथको पूछा कि प्रिय ! यह क्या वात है । उत्तर में मेघरथने कहा कि विजयार्द्ध पर्वत पर एक अलकपुर है। उसका राजा है विद्युष्ट्र और रानी है अनिलवेगा । उन दोनोंका पुत्र यह सिंहस्थ है । यह विमलवाहन मुनिकी वन्दनाको गया था । अव वहाँसे वापिस घरको जा रहा है । अभी थोड़ी देर पहले इसका विमान आपसे आप ही यहाँ रुक गया था । तब इसने इधर उधर देख भाल की और मुझे देख कर गर्वसे क्रोध किया तथा आग बबूला हो मुझ सहित शिला उठानके लिए यह इस शिलाके नीचे घुस गया। मुझे मालूम होते ही मैने उसी वक्त इस शिलाको अपने पैरके अँगूठे से दबा दिया । तव भारको न सह सकने के कारण यह चिल्लाया । जिसको सुन इसके जीवनकी भिक्षा के लिए यह इसकी मनोरमा नाम स्त्री आई है । इस प्रकार सव हाल कह कर तथा उस विद्याधरको संतोष दिला कर उन्होंने उसे वहाँसे रवाना किया |
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एक समय मेघरथ राजाने दमवर नाम चारणमुनिको आहार दिया, जिसके प्रभाव से उसके यहाँ देवतोंने पॉच अचम्भेकी बातें कीं । यह राजा हमेशा शक्ति - अनुसार तप करता था । अष्टाह्निक पर्व आया । राजाने विधिपूर्वक भगवान की पूजा वगैरह से खूब ही उत्सव किया और प्रोषधोपवास व्रत लिया; तथा रात के वक्त प्रतिमायोग घर कर वह मेरुकी नाँई अचल हो ध्यानस्थ हो गया ।
इसी समय ईशान इन्द्र अपनी सभामें बैठा था । उसने वहाँसे मेघरथको ध्यानस्थ देखा और उसकी स्तुति करना आरम्भ की कि आज आपका परम धैर्य है । इस लिए सारे संसारकी असाताको मिटानेवाले आत्मध्यानमें लीन और चिदात्मा - आपको मेरा प्रणाम है । यह सुन देवतोंने इन्द्रको कहा कि हे देव ! आप किसकी स्तुति कर रहे हैं । यह सुन इन्द्रने उत्तर में कहा कि शुद्ध सम्यग्दृष्टि मेघरथ राजा प्रतिमायोगमें लीन हो रहा है । वह ज्ञानी उत्तम गुणोंका भंडार होनेसे पूज्य है । इस लिए मैंने उसे नमस्कार. किया है । इन्द्रकी यह बात अतिरूपा और सुरूपा नामकी दो देवियों से न सही गई और वे उसी वक्त मेघरथके पास पहुंचीं । वहाँ उन्होंने विभ्रम, हाव,
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