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________________ चौथा अध्याय । '' पास पहुॅचा । उसे देख कर कुंभ उसको खानेके लिए झपटा। तब भूतोंसे न रहा गया। वे कुंभपर टूट पड़े और उन्होंने कुंभकी डंडों, लातों और हाथोंसे खूब खबर ली और उसे लेजा कर एक अजगर के बिलंमें डाल दिया । अजगर उसे एक क्षणमें ही निगल गया । जब कि कर्मके निमित्तसे ही सब कुछ होता है। तब बताओ कि राजाको विजयार्द्धकी गुफामें डालनेसे भी क्या लाभ होगा 1 मेरी सम्मति है कि जैसा कर्मका उदय होगा वैसा तो होकर ही रहेगा फिर उटपटांग उपायको काममें लानेसे फल ही क्या है ? यह सुन मतिसागरने हितकर वचनोंमें कहा कि निमित्तज्ञानीने वज्रपातका होना पोदनापुरके राजाके ऊपर बताया है; किसी खासके ऊपर तो बताया ही नहीं है । तब दुःख और रंजकी कोई बात ही नहीं है । सात दिनके लिए किसी और व्यक्तिको राजा बना कर सिंहासन पर बैठा दिया जाना चाहिए। यह सुन युक्ति- विशारद सभी मंत्रियोंने मतिसागरकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की । इसके बाद सबकी सम्मति से राज सिंहासन पर राजाके प्रतिबिंबकी स्थापना कर दी गई। सवने “यही पोदनापुरका स्वामी है " इस बुद्धिसे उसे नमस्कार किया और उसकी आज्ञा शिरोधार्य की । AAA AA 1AAAAASMAAN उधर राजा श्रीविजयने राज-काज छोड़-छाड़ कर प्रभुकी सेवा - भक्ति में मन लगाया । वे गरीवोंको दान देने लगे और मन्दिरों में शान्तिका देनेवाला शान्ति महोत्सव करने लगे । धीरे धीरे सातवाँ दिन आया और निमित्तज्ञानीके कहे अनुसार राजाके प्रतिविम्व पर वज्रपात हुआ । जब सब उपद्रव शान्त हो चुका तब शहर के लोगोंने भाँति भॉतिके बाजों और नटी नटोंके नृत्य-गान के द्वारा खूब महोत्सव किया : और उस निमित्तज्ञानीको पद्मिनीखेट सहित सौ गाँव भेट देकर वस्त्र आभूषणोंसे उसका खूब आदर सत्कार किया । 1 इसके बाद मंत्रियोंने सोनेके कलशोंसे अभिषेक कर श्रीविजयको धूमधामके साथ फिर राज - सिंहासन पर विराजमान कर दिया उन्हें फिर अपना राजा बना लिया । एक दिन अपनी माता स्वयंप्रभासे आकाशगामिनी विद्या लेकर वह सुतारा सहित ज्योतिर्वन में क्रीड़ा करनेको गये । वहाँ उन्होंने सुताराके साथ खूब मनचाही क्रीड़ा की । चमरचंच पुरीका राजा इन्द्राशनि था । उसका अशनिघोष नामक एक पुत्र था। वह सूरज पर्यन्तका स्वामी था और बड़ा मीठा बोलनेवाला था । वह भ्रामरीविद्याको साध कर वनसे अपने शहरको वापिस लौटा जा रहा था । इतने - पाण्डव-पुराण ९
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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