SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ rara aaraamaana चौथा अध्याय । कर तीन खंडके पति होनेवाले है । एवं त्रिपृष्ठ संसार परिभ्रमण कर अन्तिम तीर्थकर होगा । अतः तीन खंडके भोक्ता त्रिपृष्ठको ही कन्या देनी चाहिए। यह कन्या उसके मनको मोह कर कल्याणकी भागिनी बनेगी और उसके निमित्तसे आप सब विद्याधरोंके स्वामी बनेंगे । पौराणिकके इन वचनोंको सुन कर राजाने उसका खूब सत्कार किया और उसके वचनों पर निश्चय कर किया। - इसके बाद राजाने उसी समय इन्दू नाम दूतको बुलाया और उसे पत्र तथा भेंट दे, तथा सव बातें समझा कर प्रजापति महाराजके पास भेजा । क्योंकि जयगुप्त नामक निमित्त ज्ञानीसे वह पहिले ही सुन चुका था कि स्वयंप्रभाका पर त्रिपृष्ठ नारायण होगा। दूत राजमहलके सभाभवनमें पहुंचा और वरके लिए जो भेंट ले गया था, उसे उसने प्रजापति महाराजके सामने रख दी तथा उनके हाथमें पत्र देकर विनय-पूर्वक कहा कि देव ! ज्वलनजटी महाराजकी इच्छा है कि उनकी स्वयंप्रभा नाम लक्ष्मीके जैसी कन्याको त्रिपृष्ठ ग्रहण करें। इसके बाद पत्रके द्वारा पूरा हाल जान कर प्रजापतिने दूतका खूप आदर-सत्कार किया और वदलेकी भेंट देकर उससे कहा कि " जैसी तुम्हारे महाराजकी इच्छा है वैसा ही होगा। दूत वहॉसे विदा होकर वापिस रथनूपुर आया और उसने सारी कार्य-सिद्धिको बड़ी युक्तिके साथ महाराजको कह सुनाया। इसके बाद पड़ी भारी विभूति और ठाटबाटके साथ ज्वलनजटी स्वयंमभाको लेकर पोदनापुर पहुंचे। उनका आना जान कर प्रजापति अगवानीके लिए नगरके वाहर आये और बड़े आदरके साथ ज्वलनजटीको नगरमें ले गये। वहाँ उन्होंने एक सुन्दर सुहावने मंडपमें उन्हें ठहराया। इसके बाद ज्वलनटीने विवाहकी सब विधि यथायोग्य समाप्त कर त्रिपृष्ठके लिए कन्या प्रदान की और साथ ही सिंहविद्या, नागविद्या तथा तायविद्या ये तीन विद्यायें दी। इसी समय उत्तर श्रेणीकी अलकापुरीमें जहाँ पर अश्वग्रीव रहता था, तीन भॉतिके उपद्रव हुए । दिव्य, भौम और अन्तरीक्ष । पहिले कभी नहीं हुए ऐसे इन अपूर्व उपद्रवोंको देख कर वहॉके लोग बहुत ही व्याकुल हुए। उस समय अश्वग्रीवने शतविन्दु निमित्तज्ञानीको बुलाया और उससे पूछा कि बताओ, इन उपद्रवों का फल क्या है ? शतविन्दुने कहा कि जिसने सिंधुदेशमें सिंहका मार कर अपना पराक्रम दिखाया, जिसने आपके पास आती हुई भेंटको जबरदस्ती रास्तेमें ही छीन लिया और ज्वलनजटी खगेश्वरकी स्वयंममा नाम कन्याको जिस धीरवीरने वरा उसके द्वारा आपको क्षोभ प्राप्त होगा-आप दुखी होंगे । इस लिए आप उसे खोज कर पहिलेसे ही अपना प्रवन्ध कर उसके नाशका यत्न कीजिए ।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy