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पाण्डव-पुराण ।
इसी विजयार्द्धकी उत्तर श्रेणीमें सुरेन्द्रकान्त नगर है । वहाँके राजाका नाम मेघवाहन है । उसकी रानीका नाम मेघमालिनी है । उनके विद्युत्लभ नाम पुत्र और ज्योतिर्माला नाय एक कन्या है । एक दिन मेघवाहन सिद्धकूट चैत्यालय गया और वहाँ उसने एक चारण मुनिको देखा । उनका नाम वरधर्म था। उन्हें नमस्कार कर उसने उनसे धर्मका उपदेश सुना और अपने पुत्र विद्युत्मभके पिछले भवोंका हाल पूछा । मुनिराजने कहा कि" जम्बूद्वीपके पूर्व विदेहमें एक वत्स्यकावती देश है । उसमें प्रभापुरी नाम नगरी है । वहाँका राजा नंदन था। उसके पुत्रका नाम विजयभद्र था । वह वीर
और प्रतापी था । उसकी भार्याका नाम जयसेना था । एक दिन विजयभद्र क्रीड़ाके लिए उद्यानमें गया और वहाँ एक फलको पेड़से नीचे पड़ता हुआ देख कर वह विरक्त हो गया तथा पिहिताश्रव मुनिके पास जा, चार हजार राजोंके साथ-साथ उसने जैनेन्द्री दीक्षा धारण कर ली-वह दिगम्बर यति हो गया। एवं वह कुछ कालमें मर कर शान्त भावोंके प्रभावसे माहेन्द्र स्वर्गके चक्रक नाम विमानमें देव हुआ। वहाँ उसकी सात सागरकी आयु हुई। वह वहाँसे चयकर अब यह तेरा पुत्र विद्युत्मभ हुआ है और यह थोड़े ही समयमें मोक्ष जायगा।" मैं भी उस समय वहीं पर था । पिहिताश्रव मुनिके मुखसे यह हाल मैंने स्वयं सुना है । अतः मेरी सम्मति है कि उसे ही कन्या देना योग्य है। और ज्योतिर्माला नामकी जो उसकी पुत्री है वह अपने कुमार अर्ककीर्तिके योग्य है । इस लिए उसे हम अर्कीर्तिके निमित्त ले लेंगे। श्रुतसागरके इन वचनोंको सुन कर सुमति मंत्रीने कहा कि राजन् ! स्वयंप्रभाको प्रायः सभी विद्याधर चाहते हैं । इस लिए अपनी खुशीसे किसी एकको दे देने पर वे बड़ा वैर-विरोध खड़ा करेंगे, अत: स्वयंवर करना सबसे उत्तम और ठीक होगा। यह कह कर सुमति चुप हो गया। राजाने उसकी बात स्वीकार कर मंत्री वर्गको विदा किया। इसके बाद राजाने संभिन्नश्रोत नाम एक पौराणिकको बुला कर उससे पूछा कि पंडितजी स्वयंप्रभाका वर कौन होगा। यह सुन पौराणिकने कहा कि मै शास्त्रके आधारसे जो कुछ कहता हूँ उसे आप ध्यानसे सुनिए।
सुरम्य देशमें एक पोदनापुर नगर है। उसका राजा प्रजापति है । उसकी दो रानियाँ हैं । एक भद्रा और दूसरी मृगावती। भद्राके पुत्रका नाम विजय
और मृगावतीके पुत्रका नाम त्रिपृष्ठ है । वे दोनों ग्यारहवें, तीर्थकरके., तीर्थमें . नारायण और बलभद्र होनेवाले हैं। वे महान बली और अश्वग्रीवको मार