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________________ पाण्डव-पुराण । AAAAAAAAR यह देख कर वे दोनों दम्पती बहुत आनन्दित हुए; और बारह भावनाओंका चिंतन करते हुए सुखसे वहीं पर रहने लगे। इसके बाद मौका पाकर उन दोनों दम्पतीको भवदेवने आग लगा कर जला डाला और मौका मिलने पर शक्तिषेणके भटोंने उसे भी मार डाला। पूर्वविदेहकी पुण्डरीकनी नगरीमें-जिस समयका यह जिक्र है उस समयप्रजापाल राजा राज्य करता था; और वहीं पर एक कुवेरमित्र नाम सेठ रहता था। सेठ पर राजाकी पूरी कृपादृष्टि थी। सेठकी बत्तीस स्त्रियाँ थीं। उनमें धनवती मुख्य थी। सेठके घर पर सुकान्तका जीव रतिवर नाम कबूतर और रतिवेगाका जीव रतिषणा नाम उसकी कबूतरी हुई। वे दोनों सेठके घरमें विखरे हुए चॉवलोंको चुग कर सांसारिक विचित्र सुखोंका अनुभव करते हुए सुख-चैनसे अपना काल विताते थे। एक समय सेठके घर आहारके लिए दो चारण मुनि आये । उन्हें देख कर उन दम्पतीका हृदय हर्षसे गद्गद हो उठा और उन्होंने शुद्ध भावोंसे युनिको आहारके लिए पड़गाहा; तथा बड़ी भक्तिसे आहार दिया। उस समय उन कबूतरोंकी दृष्टि भी उन मुनियोंके ऊपर पड़ी। उन्होंने मुनियोंके चरण-क्रमलोका दर्शन कर उन्हें नमस्कार किया। मुनियोंको देखते ही उन दोनोंको अपने पिछले भवोंका स्मरण हो आया। उन्हें पहिले भवके मुनिदानकी याद हो आई, जो कि शक्तिपेण राजाने दिया था। मुनियों के पास आकर उन्होंने मुनिदानकी खूव अनुमोदना की और उसके प्रभावसे पुण्यवन्ध किया । एक दिन दाना चुगनेके लिए वे कपोत-दम्पती किसी दूसरे गाँव गये हुए थे । वहाँ उनका शत्रु पापी भवदेवका जीव विलाव हुआ था। वह इन्हें देखते ही क्रोधमें आ मार कर खागया। वहीं विजया की दक्षिण श्रेणीमें एक गांधार देश है। उसमें शीखली नाम नगरी है। वहाँका राजा आदित्यगति था । आदित्यगतिकी स्त्रीका नाम शशिप्रभा था। उसके गर्भसे वह कबूतर हिरण्यवर्मा नाम पुत्र हुआ। वहीं विजायर्द्धकी उत्तर श्रेणीमें एक गौरी देश है । उसमें भोगपुर नाम नगर है । वहाँका वायुरथ विद्याधर राजा था। उसकी रानीका नाम स्वयंप्रभा था। उसके गर्भसे वह रतिषणा नाम कबूतरी प्रभावती नाम पुत्री हुई । एक दिन राजाने देखा कि प्रभावती युवती हो गई है, उसका किसी योग्य वरके साथ ब्याह कर देना चाहिए। इस प्रश्नको हल करनेके लिए उसने मंत्रियोंको बुलाया और उनसे पूछा कि प्रभावती किसे देना चाहिए । सब मंत्रियोंने विचार करके कहा कि महाराज ! सवकी सम्मति है
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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