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________________ तीसरा अध्याय। काली नामकी जलदेवता हुआ । और वह नागिनी भी पछताती हुई तथा अपने मनमें धर्मका चिन्तन करती हुई मरी और अपने नागकी, जो कि नागकुमार देव हुआ था, प्रिया हुई । उसने नागकुमारसे जयके द्वारा हुई अपनी मौतका सारा हाल कहा, जिसको सुन कर नागकुमारको बहुत क्रोध आया और वह उसी वक्त जयको मारनेकी इच्छासे उनके महलमें पहुंचा। सच है पशु भी अपनी स्त्रीके तिरस्कारको नहीं सह सकता, उसे भी क्रोध हो आता है । रातका समय था और जय अपनी प्रिया लक्ष्मीमतीके साथ महलमें बातचीत कर रहे थे । वे कर रहे थेप्रिये ! मैने आज एक बड़ा कौतुक देखा है, उसे सुनो। इतनी बातचीतके वाद उन्होंने उस नागिनीकी सारी कथा लक्ष्मीमतीको कह सुनाई। जयकी बात सुन कर वह देव सोचने लगा कि कहॉ तो मैं एक पशु था और कहाँ यह धर्म जिसके प्रभावसे देव होगया । यदि विचारसे देखा जाय तो कहना होगा कि मोक्षकी सिद्धि तक इस संसारमें सत्संगके सिवा कोई दूसरा हितैषी नहीं है । इस विचारके साथ ही क्रोध उसके हृदयसे निकल कर भाग गया और वह विल्कुल शांत-चित्त हो गया। इसके बाद कृतज्ञ और महापुरुष जयकी उस देवने रत्नोंके द्वारा खूब पूजा की और उनको अपनी सारी कथा कह सुनाई । इसके सिवा उसने महरानसे निवेदन किया कि राजन् ! काम पड़ने पर मुझे याद करना। मै उसी वक्त आपकी सेवा उपस्थित हो जाऊँगा । इतना कह कर वह देव अपने स्थानको चला गया। इधर चक्रवर्तीके साथ-साथ जयकुमार जब सभी दिशाओंको वश कर चुके--उन पर विजय पा चुके तब उन्होंने आक्रमण करना छोड़ दिया और वे एकदम संयमी मुनिकी तरह शान्त-चित्त हो समता भाव धारण कर अमनचैनसे अपना समय बिताने लगे। · काशी नामका एक मनोहर देश है । वह सारे संसारमें प्रसिद्ध है । जान पड़ता है कि मानों भोगभूमि सब जगहसे नष्ट होकर यहीं आगई है । वह साक्षात् भोगभूमि ही है । काशीमें एक वनारस नगरी है । वह विशाल और रवच्छ महलोका स्थान है । उसके भवन स्वर्गके विमानोंसे भी बढ़े-चढ़े हैं । जान पड़ता है कि वह महलोंकी विशालता और स्वच्छतासे स्वर्गके विमानोंको जीत कर अमरावतीकी हंसी उड़ाती है । वहाँके राजा अकंपन थे । उनके तेजके मारे शत्रुगण थर थर कॉपते थे । वे पूर्वोपार्जित पुण्यकर्मको बढ़ाते थे, उसकी रक्षा भी करते
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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