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पोण्डव पुराण । श्रीपाल नामका एक ब्रह्मचारी शिष्य था। उसने पांडवोंके इस पूरे चरितको सोधा
और पहले पहल इस अर्थपूर्ण पुराणको उत्तम पुस्तक पर लिखा । उस शास्त्रके अर्थ-संग्रहमें श्रीपाल ब्राह्मचारीने मुझे बहुत सहायता दी, अतः वह श्रेष्ठ विद्याविभूषण चिरंजीवी रहे।
जो पांडवोंके इस पवित्र पुराणको आदरके साथ लिखते पढ़ते और सुनते है- लक्ष्मी, राज्य, नराधिपत्व, देवाधिपत्व आदि उत्तम पदोंके भोगोंको भोग कर उन्नत होते हैं और क्रमसे संसार-समुद्रको पार कर अविनाशी सुखके भोक्ता होते हैं।
उत्तम वचनों द्वारा भव्यों के प्रसन्न करनेवाले अन्ति, सिद्धि-समृद्ध सिद्ध, शिवदाता सिद्धि-शुद्ध साधु, रत्नत्रयरूपी जिनोक्त धर्म, जिनदेवकी रम्य प्रतिमाएँ और जिनालय ये सव सिद्धि दें। ___ जब तक चॉद-सूरज, तारा, सुरपतिसदन, समुद्र, शुद्ध धर्म है। जब तक धरणेंद्र, सुर-निलय-गिरि और देवगंगा है और जब तक त्रिभुवन-मदित कल्पवृक्ष हैं तब तक इस भारत भूमि पर शुभ देनेवाला यह पांडवोंका भारत नाम पुराण भी रहे।
श्रीमद्विक्रमभूपतेतिकहतस्पष्टाष्टसंख्ये शते, रम्येऽष्टाधिकवत्सरे सुखकरे भाद्रे द्वितीयातियो । श्रीमद्वाग्वरनीवृतीमतुले श्रीशाकवाटे पुरे।
श्रीमच्छ्रीपुरुधानि वे विरचितं स्थयात्पुराणं चिरं । भावार्थ-इस पुराणके रचे जानेका समय वि० सवत् १६०८ भादों सुदी दूज है । यह वागड़ प्रान्तके सागवाड़ा नगर स्थित श्रीआदिनाथ भगवान्के मंदिर में रचा गया। यह चिरकाल तक रहे।
इति शुभचन्द्राचार्यविरचित पांडवपुराण ।
मंगलं भूयात् ।