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छब्बीसवा अाय । १९१ जीव-अन्य भी मैंने नहीं देखे हैं और न अष्टसहस्री आदि तर्कशास्त्र ही पढ़े हैं। इसका कारण यह है कि मेरा अन्तःकरण मोहसे विषश है । मेरी यह दशा होने पर भी मैं जिनदेवका पूर्ण भक्त हूँ, उनकी उत्तमोत्तम गुणों द्वारा स्तुति करता हूँ। इस कारण सत्पुरुषों तथा अन्य साधारण जनको चाहिए कि वे क्रोध वगैरह छोड़ कर सदा ही मुझ पर क्षमाभाव रक्खें । जो पालक होता है-अबोध होता है-उसका कौन हित नहीं करता।
श्रीमूलसंघमें पधनन्दी आचार्य हुए । उनके पद पर सकलंकीत हुए, जिन्होंने मर्त्यलोकमें शास्त्रार्थकी कला प्रगट की । उनके बाद भुवनाधिपों द्वारा स्तुत्य, उत्तम तप तपनेके लिए उद्यतमना, भव-भयरूपी साँपके लिए गरुड और पृथ्वीकी भाँति क्षमाके धारक भुवनकीर्ति हुए । उनके वाद चिद्रूपके वेत्ता, चतुर, चिद्भूषण और पूजित पाद-पाके धारी चन्द्रसूरि हुए-वे हमारे चारिप्रकी शुद्धि करें। उनके वाद सत्पुरुषों द्वारा सेवित, राजों द्वारा मान्य, सुमतिके धारी और मुदित.आत्मा विनयकीर्ति हुए । वे विभु हमारी संसारसे रक्षा करें। उनके पथ पर गुण-समुद्र, व्रती, गुण-गरिष्ठ, सर्वोत्तम श्रीमान् वादीमसिंह शुभचन्द्र हुए, जिन्होंने उत्तम रुचिके धारक पाण्ड्ड पुत्रोंकी सिद्धिको लेकर यह विचार-सुकर और शुभ, सिद्धि तथा सुख देनेवाला चरित रचा। इन्हीं शुभचन्द्र यतीन्द्र चन्द्रने नीचे लिखे ग्रन्थ और भी रचे है।
चन्द्रप्रभचरित, पंचनामचरित, मन्मथमहिमा, जीवन्धरचरित, चन्दनकथा, नंदीवरकया, आशाघरकत अनगार धर्मामृतकी आचारवृत्ति टीका, तीसचौवीसी पूजा, सिद्धपूजा, सरस्वतीपूजा, पार्धनाथकान्यकी पंजिका । 'इनके सिवा इन्होंने कितने उद्यापन भी रचे हैं। और संशय-वदन-विदारण, अपशब्दखंडन, सत्तत्वनिर्णय, स्वरूपसंबोधिनीवत्ति, अध्यात्मपद्यत्ति, सर्वार्थपूर्व, सर्वतोभद्र और चिंतामणि नाम व्याकरण-आदि ग्रन्थ भी इनकी कृति हैं । एवं सर्वांगार्थमरूपिका अंगप्रज्ञप्ति तथा जिनदेवके कितने पवित्र स्तोत्र भी इन्होंने रचे हैं।
इन्हीं शुभचन्द्र देवने प्रीतिके वश हो यह पांडवोंका परम पवित्र महान, · पुराण बनाया है। यह दीप्तिशाली वंशोंका भूषण है, शुभका स्थान है, शोभा-पूर्ण है, इसमें बहुतसे निर्मल गुण हैं, उत्तम छन्द-रूपी चिंतामणियों द्वारा यह गूंथा गया है और सरल है। इसका दूसरा नाम 'जैन महाभारत' भी है। इन्हीं शुभचन्द्रदेवका समृद्धिशाली बुद्धि-विशद, तर्कशास्त्रका परित, वैराग्य आदि विशुद्धियोंका जनक