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चौबीसवाँ अध्याय ।
३६९ आत्मा और शिवके भंडार, तुम्हें नमस्कार है । शत्रुओंके विजेता और ज्ञानसाम्राज्यके राजा, तुम्हें हमारी वन्दना है । वाल ब्रह्मचारी, अनंत सुखके खजाने • अनंत ज्ञानके धनी, विशुद्ध आत्मा आपको नमस्कार है । नाथ, सूरजके जैसी
प्रभावाली, तन्वी, चन्द्रवदनी, रति जैसी रूपशालिनी, गुणोंकी खान, निर्दोष जिस राजीमतीको आपने बाल्यावस्थासे छोड़ दिया वैसी सुंदरी युवतीको कौन छोड़ सकता है काम-जयकी हद हो गई ! प्रभो, तीन लोकमें ऐसा कौन है जो आपके सब गुणोंकी गाथाको गा सके । इस प्रकार स्तुति कर दीप्तिशाली पांडव सभामें बैठ गये।
इसके बाद भगवानने उनके लिए धर्मका उपदेश करना शुरू किया । भगवान बोले कि पांडवों, अब तुम हर-प्रयत्नके साथ एकाग्र-चित्त होकर उस धर्मका उपदेश सुनो कि जो सुखका मुख्य साधन है । राज-गण, धर्म जीवदयाको कहते हैं । वह विशद धर्म एक भेद-रूप ही है । दया-सर्वोत्तम दया-छह कायके जीवों की रक्षाको कहते हैं। इस धर्मके इस प्रकार दो भेद हैं, एक यतिधर्म और दूसरा श्रावकधर्म । इनमें यतिधर्म उसे कहते हैं जिसमें कि पॉच प्रकार आचारका पालन किया जाता है । निर्मल सम्यग्दर्शनके पालनेको दर्शनाचार कहते हैं । जिसके द्वारा ज्ञान विशुद्ध होता है उसे ज्ञानाचार कहते हैं। तेरह प्रकारके चारित्रको ठीक-ठीक पालनेका नाम चारित्राचार है । विचार-शील मनुष्योंने बाह्य और अभ्यंन्तरके भेदसे बारह प्रकारके तप तपनेको तपाचार माना है । और जो वीर्यको प्रगट करके उत्तम आचरण करना है उसे वीर्याचार कहते हैं । पांडवोंको नेमि जिनने इस तरह धर्मका उपदेश किया । बाद वे भव-भेदी नेमि भगवान् वोले कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रके भेदसे धर्म तीन प्रकारका भी है । शंका आदि आठ दोष रहित तथा आठ अंग सहित जो पदार्थोंका श्रद्धान करना है उसे सम्यग्दर्शन कहते हैं । जिनदेवने तत्त्वोंके सच्चे, निर्मल ज्ञानको सम्यग्ज्ञान कहा है । वह शब्द और अर्थके भेदसे
दो तरहका है। कर्मोंको दूर करनेवाले चारित्रके तेरह भेद है और कौंको दूर 7 करनेवाले आचरणको चारित्र कहते हैं । अथवा क्षमा आदिके भेदसे धर्म दस प्रकारका भी है । क्रोधके जीतनेको क्षमा कहते है। मान नहीं करनेका नाम मार्दव है। मायाचारके त्यागको आर्जव कहते है । लोभ नहीं करनेका नाम शोच है। सच बोलनेको सत्य और जीवोंकी रक्षाको संयम कहते हैं । देहके तपानेको तप और धनके छोड़नेको त्याग कहते हैं। शरीर आदिसे ममत्व नहीं करनेका नाम
पाण्डव-पुराण ४७