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पाण्डव-पुराण।
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असंख्यात भाग मात्र हैं । मदसे उद्धत हुए जीव जिनके द्वारा मदिराकी भाँति प्रमादी हो जाते हैं उन्हे प्रमाद कहते हैं। प्रमाद भी त्यागने-योग्य हैं; क्योंकि इनसे संसार बढ़ता है। ____ पांडव वहुत-काल मन-ही-मन यो संसारकी दशाको विचार कर बाद वहाँसे निकले और पल्लव नाम देशमें आये; जहाँ कि जिन भगवान विराजमान थे।
वहाँ उन्होंने सुर-असुरों द्वारा सेवित और तीन लोकके स्वामी नेमि प्रभुकी वन्दना की । नेमिप्रभु छत्रत्रय द्वारा शोभित थे, शोक हरनेवाले अशोक वृक्ष द्वारा अंकित थे । उनके ऊपर सुंदर चौंसठ चॅवर ढोरे जा रहे थे । वे सिंहासन पर विराजे हुए ऐसे जाने जाते थे जैसे कि तीन लोकके सिखर पर ही विराजे हों। उनकी देह स्वयं ही सुगंध-पूर्ण और दिव्य थी, अतः पुष्पोंकी वरसासे उसकी ।
और अधिक शोभा हो गई थी। भगवानने कर्म-वैरियों का नाश कर दिया था, जिसकी.. घोषणाके लिए जो दिव्य दुन्दभियाँ वजती थीं उनसे उनकी और भी शोभा बढ़ गई थी। वे अठारह महा भाषा-रूप एक महाध्वनिमें उपदेश करते थे । करोड़ सूर्योकी प्रभासे भी कहीं अधिक भासमान प्रभावाला उनका निर्मल भामंडल था। ऐसे प्रभुको देख कर पांडवोंने भक्तिके साथ, विविध सामग्री द्वारा उनकी पूजा की सेवा की। ।
इसके बाद वे पवित्र पांडव उनकी यो स्तुति करने लगे कि नाथ, इस संसार रूप समुद्रमें मनुष्योंके लिए यदि कोई नौका है तो तुम्ही हो । तुम्हीं संसारके स्वामी और परमोदयशाली हो । तुम्ही जगत्के रक्षक और परमेश्वर हो । तुम्ही हितैषी और भवसे पार करनेवाले हो । तुम्ही केवलज्ञान द्वारा भासमान और परम गुरु हो । यही कारण है कि जीव तुम्हारे प्रसादसे ही संसार-समुद्रको पार करते हैं और तुम्हारे प्रसादसे ही अविनाशी मोक्ष पदको पाते हैं । हे भगवन् , तुम अव्यय हो, विभु हो, दीप्तिशाली हो, भर्ता हो, भव-भयके हो हो, भव्यजीवोंके ईश हो, भय-संकटोंको भग्न करनेवाले हो । यही कारण है जो गणनायक तुम्हें कैवल्य, विपुल, देव, सर्वज्ञ, चिद्गुणाश्रय, मुनीन्द्र और गणेश कहते हैं । प्रभो, धन्य है आपको जो आपने एक विपुल राज्यके होते हुए भी बाल-कालमें भी गज, घोड़े आदि लक्ष्मी और राजीमतीको स्वीकार न किया । इसी लिए कहते हैं कि आप कंदर्प-दर्प-सर्पको मारनेके लिए गरुड़के जैसे हो । पभो, आप लोकको हितका उपदेश करते हो, अतः सबके हितैषी हो । भगवन् , आप अनन्त धुद्धिशाली है, अतः आपके काम भी बुद्धिसे पूर्ण होते हैं । अतः हे चिदात्मा-मय जिनेन्द्र, हम तुम्हारे लिए नमस्कार करते हैं-बार-बार तुम्हारे चरगमि धोक देते हैं । हे केवलज्ञान-रूप महात्मा, तुम्हारे लिए नमस्कार है। केवल