________________
पाण्डव-पुराण। ____ इसके बाद देवकुरु नामकी पालकी पर सवार होकर भगवान वनको चले गये। और वहाँ सहस्साम्रक्षके नीचे बैठ कर सावन सुदी छटके दिन हजार राजोंके साथ साथ प्रभुने दीक्षा ग्रहण की । थोड़े ही समयके वाद भागवानको मनापर्यय ज्ञान हो गया । इसके बाद आसन्न-केवली नेमिप्रभु पष्ठोपवासके बाद पारणाके लिए द्वारावती आये । उन्हें पारणाके लिए आया देख कर कनकाम नाम राजाने भक्ति-पूर्वक पड़गाहा, ऊँचे आसन पर बैठा कर उनके पॉच धोकर उनकी पूजा की और मन-वचन-कायकी शुद्धिके साथ उन्हें नमस्कार किया। इसके बाद नरेश्वरने अन्न-शुद्धि पूर्वक उन्हें आहार-दान दिया । तव श्रद्धा
आदि गुणोंके भंडार कनकाभके यहाँ पाँच आश्चर्यमयी वातें हुई । देवोंने साड़े बारह करोड़ रत्न बरसाये, फूल वखेरे, शीतल सुगन्धित पवन चलाई, सुगन्धित जल बरसाया और दुन्दुभि वाजे वजाये । इसके वाद आहार करके प्रभु वनको चले गये और वहाँ स्थिर होकर चिद्रूप परमात्माका ध्यान करने लगे। . इस प्रकार ध्यान करते प्रभुको छप्पन दिन छमस्थ अवस्थामें बीते। यहॉसे प्रभु रैवतक गिरि पर जाकर ध्यान करने लगे। वहाँ षष्ठोपवास धारण कर महाव्रतके धारी, गुप्तियों द्वारा अलंकृत तथा समितियोंके पालक प्रभु परीपहोंके तेजसे बड़े सुशोभित हुए। उन योगी जिनने धर्मध्यानके बल आयुकर्मके विना तीन कर्मको गला दिया। और फिर दर्शनमोहनीय कर्मकी तीन और चरित्र मोहिनीय कर्मकी चार अनन्तानुवन्धी कषाय इस प्रकार सात प्रकृतियोंको, जो कि आत्माके सम्यक्त गुणको घातती हैं, आत्मासे नष्ट कर दिया। इसके बाद शुक्लध्यानके बलसे उन्होंने घातिया कर्मोंकी शेष ४० चालीस तथा नामकर्मकी तेरह-नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, दो इन्द्रिय, ते ईन्द्रिय, चौ इन्द्रिय एकेन्द्रिय आतंप, उद्योत, साधारण,, सूक्ष्म और स्थावर-प्रकृतियोंका नाश किया, जिससे प्रभुकी आत्मामें अद्भुत केवलज्ञान-ज्योति प्रगट हो गई। तब कुँवार सुदी पड़वाके दिन उनके केवलज्ञानकी पूजाके लिए मनुष्य, सुर-असुर सभी आये । भगवानके वरदच आदि ग्यारह गणधर हुए। और तव कृष्ण आदि राजों द्वारा पूजित प्रमुकी अपूर्व ही शोभा हुई। __ इसके बाद वैरियों और पापों पर विजय पानेवाले उन भगवानके लिए धनदने आकर समवसरणकी रचना की । उसकी अद्भुत शोभा-थी .। समवसरण , प्रासादों, परिखाओं, लताओं, उद्यानों, कल्पवृक्षों, गृहों, पीठों भादिसे बड़ा शोभित था । मानस्तंभ,, नाट्यशालाएँ, उन्नत स्तूप, मार्ग,