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चाहिए ।) इसके बीच में दीप्त सुदर्शन नाम मंदर ( पहाड़ ) हैं जो लाख योजनका ऊँचा है और पृथिवीका तिलक जैसा है । इसके दक्षिण ओर चढे हुए धनुषक आकारका कलाओंसे पूर्ण, छह खंडोंमें विभक्त और संसार भर में उत्तम भरत नाम क्षेत्र है ।
पाण्डव-पुराण |
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इसमें एक कुरुजांगल नाम देश है जो कि वहुत सुंदर हैं, कुरुभूमि तुल्य देशोंसे परिपूर्ण है, अपनी बढ़ी चढ़ी विभूति द्वारा सुशोभित है । इस देश में हाथियों के समूह द्वारा सर्वोत्तम हस्तिनापुर नाम नगर है । जिनकी खाई सदा ही गंगा जल द्वारा भरी रहती है । हस्तिनापुरके राजा युधिष्ठिर हैं। वह कौरवाग्रणी हैं और पृथिवीको धारण करनेके लिए पूर्ण समृद्ध हैं । संसार- प्रसिद्ध सार्थक नामधारी पार्थ उनका एक भाई है । उसकी पत्नीका नाम है द्रौपदी । बस, इस चित्रमें लिखा हुआ यह उसी सुरूपिणीका रूप है सच कहता हूँ कि यदि आपको संसारका सार सुख भोगने की इच्छा हो तो आप इस स्त्रीरत्नको हस्तगत कीजिए । राजन्, इसके बिना पाये आप अपने जीवनको व्यर्थ ही समझिए | अब आपको जो रुचे वही कीजिए | इतना कह कर नारद तो आकाशमार्ग द्वारा चले गये और इधर उधर राजा द्रोपदीके रूप द्वारा चित्तके हरे जानेके कारण उसको याद करता हुआ बड़ा भारी दुःखी हुआ । यहाँ तक कि उसे उसके मिले बिना चैन ही नहीं पड़ने लगा । अन्तमें उसके प्राप्तिका कोई उपाय न देख वह वनमें गया और वहाँ मंत्री आराधना में चित्त देकर उसने बहुत जल्दी एक गदाधारी संगम नाम सुरको साध लिया । संगमने आकर, प्रणाम कर कहा कि देव, मुझे अपनी उस इष्ट - सिद्धिकी आज्ञा दीजिए जिसके द्वारा आपका चित्त प्रफुल्ल हो; आप खुश हों ।
तब राजाने सन्तुष्ट होकर उससे कहा कि, देव, परमोदर्यशाली, अनुपम रूप-सम्पन्न और मानिनी द्रौपदीको लाकर मुझसे मिला दो । बस, मेरी यही कामना है । और इसी लिए ही मैने तुम्हें कष्ट दिया है। राजाके बचन सुन कर अनुरागका भरा कार्य-कुशल वह देव आकाश मार्ग द्वारा बहुत जल्दी दो लाख योजन वाले समुद्रको वातकी बातहोंमें लाँघ कर, विना किसी रोकटोकके हस्तिनापुर पहुँच गया । वहाँ वह रातमें द्रोपदी के महलमें गया और उसने सोई हुई साक्षात् लक्ष्मी जैसी द्रोपदी को हर लाकर, सोई हुई अवस्थामें ही, पद्मनाभके उद्यानके एक सुंदर महलमें छोड़ दिया । नींदके वश हुई द्रोपदीको इस समय हेय उपादेयका
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