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बावीसवाँ अध्याय।
रहता है । इसने अपने वाहुदंडों द्वारा चरियोंको दण्डित किया था, अतः सब राजे इसकी स्तुति करते हैं । यह सब पाप-विद्याओंका ज्ञाता विद्वान् था । विशाल
और निर्मल इसका वक्षःस्थल था। पृथिवीकी रक्षा करनेमें यह बड़ा चतुर था । यह कभी भी शत्रुका लक्ष्य न होता था और रूपके द्वारा यह कामदेवको जीतता था।
उधर नारदने यह किया कि एक चित्र पट्ट पर अपनी सुन्दरताके द्वारा सारे स्त्रीसमूहको जीतनेवाला और बड़े अचम्भेमें डालनेवाला द्रोपदीका सुंदर चित्र खींचा और लेजो कर अपनी दीप्तिसे सूरजको जीननेवाले उस चित्रको उसने पद्मनाभ राजाकी भंट किया । उस चित्रमें सोनेकी जैसी उज्ज्वल और सुंदर हार द्वारा शोभित कुचोंवाली द्रोपदीको देख कर वह मन-ही-मन विचार करने लगा कि यह कौन है ! स्वर्गसे आई हुई शची है या अपना महल छोड कर लक्ष्मी ही आ गई है । यह रोहिणी है या सूरजकी पत्नी ही पृथिवी पर आ पहुंची है। अथवा किन्नरी या खेचरी तो नहीं है; एवं गुणशालिनी यह कामकी पत्नी रति तो नहीं है। यह कौन है-किसका यह चित्र है । यो नाना विकल्प पर उसने बहुत विचार किया, पर वह उसके विषयमें कुछ भी निश्चय नहीं कर सका कि यह मोहनवल्ली कौन है, इम तरहका विचार करता करता ही वह मोह-वश होकर मूच्छित हो गया । उसकी यह दशा देख महलके सब लोग हाहाकार करते हुए वहाँ दौड़े आये । उन्होंने तुरंत शीतोपचार आदि उपाय किये तब चिंतासे पीड़ित पद्मनाभ कुछ होशमें आया । होशमें आते ही नारदको देख उसने उन्हें प्रणाम कर पूछा कि प्रभो, यह उत्तम स्त्री कौन है कि जिस महान् रूपवाली, सुविभ्रमा और विभ्रम-पूर्ण भूयुक्त आननवालीका यह चित्र है। भव्येश, सब बातें ठीक ठीक कहिए, ताकि मुझे पूरा पूरा निश्चय हो जाय । उत्तरमें नारदने कहा कि राजन्, यदि आपको इस अपूर्व सुंदरीके विषयमें जिसका कि • यह चित्र है, जाननेकी इच्छा हो तो जरा ध्यान देकर सुनिए । मै उसका
सव वृत्तान्त कहता हूँ । निश्चय है कि उसको सुननेसे आपका चित्त स्थिर हो जायगा।
सब दीपोंके ठीक वीचमें एक जम्बूदीप नामक दीप है जो कि बड़ा ही मनोहर और महान् है और जिसने कि अपने वृत्त (गोलाकार) द्वारा चंद्रमा और योगियोंको भी जीत लिया है। (योगियोंके पक्षमें वृत्तका अर्थ चारित्र समझना