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shared अध्याय |
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कुम्हारके पास भी होता है । सच तो यह है कि तू यहाँसे शीघ्र ही भाग जा, व्यर्थ ही मेरी भुजाओंका बलि न वल । क्या तुझे याद नहीं है कि समुद्रविजय सदासे मेरा सेवक रहा है; और तेरा पिता वसुदेव पहले मेरे यहाँ पयादा था । तू तो एक दीन ग्वालका पुत्र है, फिर रे खल, जान पड़ता है तेरे पापका ही उदय आ पहुँचा है जो तू जान-बूझ कर मृत्युके मुखमें प्राप्त होना चाहता है। सुन कर कृष्ण के नेत्र क्रोध से लाल हो गये । उसने उसी समय जरासंध पर चक्र चलाया । चक्रने उसका मस्तक घड़से जुदा करके पृथ्वी पर गिरा दिया । इसके बाद चक्र लौट कर वापिस कृष्णके हाथमें आ गया । यह देख देवतों, राजों और यादवोंने वड़े प्रसन्न होकर कृष्णका जय-जयकार किया । उस जयध्वनिसे सब दिशायें गूँज उठीं। कृष्ण पर फूलोंकी बरसा करते हुए देवतोंने कहा कि कृष्ण, तुम तीन खंडके स्वामी नौवें नारायण हो । अतः अपने पुण्यसे पाई हुई इस पृथ्वीका अब तुम भरण-पोषण करो; इसका शासन करो ।
इस विजय के बाद कृष्ण रण भूमिमें पहुँचे । जब उनकी दृष्टि मरे पड़े जरासंध पर पड़ी तब उन्हें बड़ा विषाद हुआ । इसी तरह जरासंघको देख कर
पांडव भी बड़े दुःखी हुए । कृष्णने वहीं एक जगह निसाँसें छोड़ते हुए दुर्योधनको देखा । देख कर वे साम्यभावसे बोले कि भाई, अब तुम दयामय धर्मको याद करो और द्वेपकी भावनाको बिल्कुल ही भूल जाओ । देखो, जीवोंको जो जन्म जन्ममें सुख मिलता है वह सब इस धर्मका ही प्रभाव है । इस लिए अब तुम अपने भात्माको और और झंझटोंसे निकाल कर इसीकी ओर झुकाओ। इसमें तुम्हारी भलाई हैं । सुन कर निर्लज्ज दुर्योधनको उस दशामें भी बड़ा क्रोध आया और वह वोला कि तुम घबराओ मत, मैं निश्चयसे जीऊँगा और तुम्हारा सर्वनाश करूँगा । तुम मुझे क्या सीख देते हो, मैं कभी तुम्हें छोड़नेवाला नहीं । तुम चाहे कैसी ही बातें क्यों न बनाओ । उसके ऐसे उत्तरको सुन कर कृष्णने समझ लिया कि यह बड़ा अधर्मी है— इसे धर्मकी बात कभी नहीं सुहायेगी । इसके बाद निसॉसें छोड़ता हुआ वह धर्म-हीन अधर्मी दुर्योधन थोड़ी ही देर में अशुभ लेश्या से मरा और मर कर पापके उदयसे दुर्गतिमें गया, जो बड़ा भारी दुःखका स्थान है।
इसके बाद सेना, द्रोण तथा कर्णको मृत्युके मुखमें पड़े देख कर पांडव, कृष्ण, वलदेव आदि बड़े शोकाकुल हुए और उन्होंने उसी वक्त जरासंध आदि