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पाण्डव-पुराण।
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साँप और नौला हितकी इच्छासे एक दूसरेको अपने पास स्थान देते है-एक जगह किलोलें करते है । विल्ली और चूहा भाई-बन्धुओंकी तरह साथ-साथ खेलनेको तैयार है ! तथा यह थीं उन्हीं महात्माका प्रभाव है कि जो ताल-तलइयाँ दरसोंसे सूखी पड़ी थीं वे आज जबसे लवालब भर गई हैं । और कोक, हंस आदि पक्षी उन पर कलरव शब्द करते हैं । तथा बहुत दिनोंके सूखे हुए तालवृक्ष भी आज फल-फूल और पत्तोंसे लहलहा उठे हैं; फल-फूलोंके भारसे पृथ्वी तक नीचे झुक गये हैं। जान पड़ता है कि वे पृथ्वी तक नीचे झुक कर भगवानको नमस्कार ही करते है। इसके सिवा राजन् ! यह जो और और सब वृक्षों पर अकालमें ही फल-पुष्प आ गये हैं इससे जान पड़ता है कि ये सब वृक्ष अपनेआपको अहमिन्द्र मान फल-पुष्प ले-ले कर प्रभुकी सेवा और भक्ति करनेको ही उपस्थित हुए हैं। महाराज ! सब ऋतुओंके फल-पुष्पोंको एक साथ आया देख कर पहले तो मुझे अचंभा हुआ, पर पीछे उन प्रभुका माहात्म्य जान सब ऋतुओंके फल-फूलोंको लेकर मैं आपकी सेवामें आया हूँ। इस शुभ समाचारको सुन कर महाराजके हर्षका कुछ पार न रहा। उनके रोमाञ्च हो आये और मुँह प्रसन्न हो उठा । इस समय महाराजने संदेशा लानेवाले वनपालको खब धन-सम्पत्ति दीउसे मालामाल कर दिया । और आप सिंहासनको छोड़ जिस दिशामें वीरप्रभु थे उस ओरको सात पेंड़ आगे गये तथा वहॉले उन्होंने अनेक राजोंके साथ-साथ वीरमभुको विनीतभावसे नमस्कार किया । बाद वे अपने स्थान पर आ बैठे । इस वक्त वीरमभुकी वन्दनाके लिए वे बहुत ही उत्सुक हो रहे थे। ।
__ वीरप्रभु गुणोंके आश्रय हैं, उनको गुणोंने इस अभिप्रायसे अपना आश्रय बनाया कि जिसमें वे (गुण) सारे संसारमें प्रसिद्ध हो जायें। वीरप्रभुने ही व्रतोंका उपदेश किया है और उन्होंने ही धर्म-तीर्थको उलाया है । तथा वे सिद्धिके स्वामी
और संसार भरके रक्षक हैं । एवं संसारी जीवोंके मोह-मदको उतारनेवाले हैं। उन वीरम के लिए स्वस्ति हो।