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पाण्डव-पुराण। पूर), फूलोंकी वरसा, अशोकक्ष, दिव्यध्वनि और हजारों दुन्दभी वाजोंका शब्द इन आठ भातिहााँसे वह और भी सुशोभित था। उसमें आने-जानेवाले लोगोंके कोलाहल शब्दसे दशों दिशायें गूंज रही थीं। और देवतागण द्वारा ले आये गये गौतम आदि गणधर भी वहाँ भगवानकी सेवामें उपस्थित थे । तात्पर्य यह कि उस वक्तकी शोभा अपूर्व थी।
मगध उत्तम गुणों से भरपूर और एक मनोहर देश है। धर्मात्मा और सत्पुरुपोंका वह निवास है; अतः ऐसा जान पड़ता है कि देवता-गणका निवास स्थान स्वर्गलोक ही है। उसमें राजगृह नाम एक सुन्दर नगर है । राजगृहमें भारी विशाल
और मनोहर राज-मन्दिर बने हुए हैं, जिनसे वह ऐसा जान पड़ता है मानों इन्द्रका पुर ही है । श्रेणिक वहाँके राजा थे। वे उत्तम श्रेणीके पुरुष थे, गुणोंके भंडार और सम्यग्दृष्टि थे । उदार-चित्त थे, प्रतापी और भारी ऐश्वर्यवाले थे । उनकी महारानीका नाम चेलिनी था। चेलिनी पर वे बहुत लाड़-प्यार करते थे।
एक दिन उनके पास यह खबर आई कि विपुलाचल पर्वत पर वीरमभु आये है । इस शुभ समाचारसे वे बहुत प्रसन्न हुए और उसी वक्त वीरप्रभुकी वन्दनाको गये, जिस भॉति आदिनाथ प्रभुके शुभ आगमनको सुन कर उनकी वन्दनाको उदार आशय भरत चक्रवर्ती गये थे । इस समय चार प्रकारकी सेना या यों कि चतुरंगी सेना महाराजके साथ-साथ थी। सजे-धजे घोड़े, सुन्दर लम्बे मोटे दातोंवाले हाथी, भाँति भॉतिकी वस्तुओंसे सजे हुए रथ और मनोहारी नृत्य करते हुए पयादे थे। भॉति भाँतिके वाजोंकी ध्वनिसे सव दिशायें गूंज रही थीं। वन्दीजन महाराजके यशको गाते जा रहे थे। सारांश यह कि उस समयका दृश्य अपूर्व ही था । थोड़े ही समयमें महाराज वीरममुके पास पहुंचे और वहाँ वे हाथी परसे उतर पड़े । एवं छत्र, चमर आदि राज-चिन्होंको वहीं छोड़ कर उनकी सभामें पहुँचे । वहाँ जाकर उन्होंने तीन लोक नाथ वीरप्रभुको एक मनोहर सिंहासन पर विराजे हुए देखा। उनके शिर पर छत्र-त्रय सुशोभित थे। वे और
और देवतोंसे भिन्न वीतराग रूपमें थे। और वहाँ सभी सभ्यगण उनकी और उनके तपश्चरण आदि कर्तव्योंकी पुनः पुनः प्रशंसा करते थे। एवं राजा-महाराजा और देवता गण उन्हें नमस्कार कर उनके चरणोंकी धूलिको अपने मस्तक पर
चढ़ाते थे; उनकी पूजा-वन्दना करते थे । वीरप्रभुको देख कर महाराजने उनकी , बन्दना की और भक्तिभावसे उन्हें नमस्कार किया। इसके बाद स्तुत्य ( स्तुति