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________________ १८८ पाण्डव-पुराण । . wwww . moninen.. . owwwun. ..wwimarwar- ww .. तरह काठका निमित्त पाकर आग जल उठती है उसी तरह कौरवोंके इन वचनोंको सुन कर अर्जुन (सोने) की नॉई दीप्त अर्जुनकी क्रोधाग्नि भी भभक उठी । वह बोला कि जिस तरह सैकड़ों कौओंको एक साथ ही भयभीत कर देने के लिए एक ही . पत्थरका टुकड़ा काफी होता है उसी तरह शक्तिशाली मेरा एक ही वाण इन सौको ही एकदम भयभीत कर देनेके लिए काफी है। उसके सामने इनकी कुछ भी न वन पड़ेगी। ये लोग मदोन्मत्त होकर तभी तक मर्यादाको लाँघते हैं जब तक कि अँधेरेको दूर करनेवाले सूरजकी नॉई तेजशाली मैं क्रुद्ध नहीं हुआ--- मेरे क्रोधके सामने इनकी कुछ भी कला काम न आयगी, जिस तरह कि सूरजके सामने अँधेरेकी कुछ भी नहीं चलती । इसके साथ ही पार्थने हाथमें धनुष उठाया और उस पर वाण चढ़ा कर वह युद्धके लिए उद्यत हो गया । उसकी उस समयकी अवस्थाको देख कर स्थिरघुद्धि युधिष्ठिरने उसे शान्तिसे समझा कर रोका। और है भी यही ठीक कि सज्जन पुरुष विरोधको दूर करनेवाले होते हैं । इसके वाद कुलीन नकुल बोला कि मैं इसी समय इन कौरवोंके कुलरूपी शालवृक्षको जड़से उखाड़ नष्ट किये देता हूँ। ये तो पतंगोंके समान हैं और मैं हूँ इनके लिए आगके तुल्य, अत: प्रयत्नके विना ही ये अभी जल कर खाक हुए जाते हैं इनमेंसे एक भी वचनेका नहीं । इसी बीचमें सहदेव भी बोल उठा कि ये कौरव-वृक्ष तो चीज ही क्या हैं ! मेरे द्वारा कु-हाड़ेसे काटे जाने पर ये विनश्वर ठहर ही कहाँ सकते हैं। मैं अभी अपने बाहु-दंडोंसे कुल्हाड़ेको उठाता हूँ और इनके टुकड़े टुकड़े करके दिशाओंके स्वामी दिगीशोंको वली दिये देता हूँ । सच कहता हूँ कि ज्ञान-शून्य, पिशुन और महान् आभिमानी इन कौरवोंको जब तक मैं गर्व-रहित न कर दूंगा तब तक मुझे चैन ही न पड़ेगी। ये अभिमानी सॉपके समान हैं और मैं हूँ इनके लिए गरुड़के समान; फिर ये मेरे सामने फण उठा कर चाहे कितनी ही पुकार क्यों न करें पर इनका कुछ वश नहीं है । आखिर इन्हें ही प्राणोंके लाले पड़ेंगे। इस प्रकार क्रोधसे आगके समान जलते हुए इन दोनोंको भी युधिष्ठिर-रूप मेघने अपने वचन-रूपी जलको वरसा कर शांत किया । इस तरह. युधिष्ठिरके समझाने पर वे चारों भाई पहलेकी नॉई ही शान्तचित्त हो गये और युद्धकी कामना छोड़ कर, स्थिर-चित्तसे. राज्यको भोगते हुए, निर्भय हो अपना समय योग्य कार्यों में बिताने लगे।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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