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पाण्डव-पुराण। जो कवियोंमें उत्तम और दूसरोंकी निंदा नहीं करनेवाला हो और शीलका सागर, गुरु और शास्ता हो ।
श्रोता-उपदेश सुननेवाला-वह अच्छा है जो शीलसे विभूषित और सभ्यतसे युक्त हो सुन्दर हो; दाता हो; भोक्ता और नाना लक्षणोंवाला हो; व्रतोंका धारक, धर्मात्मा पुरुषोंको आश्रय देनेवाला और परिपूर्ण इंद्रियोंवाला हो; उदार और पवित्र-चित्त हो; हेय-उपादेयका जाननेवाला हो; शुशूपा, श्रवण, ग्रहण, धारण और स्मरण इनमें प्रवीण हो; तर्क-वितर्कके द्वारा हर एक पदार्थका विचार करनेवाला हो; तत्त्वज्ञानी और तत्त्व-चर्चाका प्रेमी हो; कुलीन, प्रवीण
और गुरुकी आज्ञाका पालक हो; एवं विवेकी और विनयी हो; स्वच्छ अभिमायौवाला हो; सावधान और क्रिया-कांडका पूरा पूरा जानकार हो; सुन्दर और सम्यज्ञानी हो; दयालु और दया कर दीन-दुखी और भूखे जीवोंको दान देनेवाला हो; जैनधर्मकी प्रभावना करनेवाला, सदाचारी, विचारवाला और धर्मज्ञ तथा धर्मात्मा हो; हर एक क्रिया आदि चारित्रके पालनेमें अगुआ हो; मीठा बोलनेवाला हो; जिसको सत्पुरुष मानते हों और जो अभिमान-रहित सरल स्वभाववाला हो ।
उस श्रोताके शुभ, अशुभ आदि बहुत भेद हैं । हंस, गाय आदिके स्वभावसमान श्रोता उत्तम हैं । मिट्टी, तोता आदिके स्वभाव-समान श्रोता मध्यम तथा विल्ली, बकरा, शिला, साँप, कौआ, छेदवाला घड़ा, चलिनी, डॉस, भैंसा और जोंक (गोंच ) के स्वभाव-समान श्रोता अधम हैं।
असत्र श्रोताओंको उपदेश देना-शास्त्र सुनाना-व्यर्थ है, क्योंकि जैसे टूटे-फूटे घड़ेमें पानी नहीं ठहरता वैसे ही उनके हृदय पर उपदेशका कुछ भी असर नहीं होता; और सत् श्रोताओंको दिया हुआ उपदेश उपजाऊ भूमिमें वोये हुए वीजकी भॉति कई गुणा फलता है। ____ कथा-वाक्योंकी रचनाके द्वारा किसी पदार्थके वर्णन करनेको कथा कहते हैं । कथाके दो भेद है; एक सत्कथा और दूसरी विकथा।
सत्कथा वह है जिसमें व्रत, ध्यान, तप, दान और संयम आदि तथा पुण्य-पापका फल और चरम शरीरी आदि पुरुषोंके विचित्र चरितोंका वर्णन हो । सत्कथाको कहने या सुननेसे धर्म-अर्थकी वृद्धि होती है, सुख मिलता है। उसके चार भेद हैं । उनको भी सुनिए ।
जिस कथासे रागभाव घट कर संवेगकी वृद्धि हो वह संवेगिनी कथा है। जिसमें धर्म तथा धर्मके फलका और वैराग्यका कथन हो वह निर्वेगिनी कथा है । तथा