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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास की, दिगम्बर धर्मानुयायी था। भगवान पार्श्वनाथ को एकति सूरत के पास महुआ के दिगम्बर मन्दिर में विराजमान है । इसकी प्रतिष्ठा वि स 1390 मे एक पल्लीवाल बन्धु ने ही कराई। इससे सिद्ध होता है कि गुजरात के बहुत से पल्लीवाल दिगम्बर धर्मानुयायी ही रहे। सोलहवी शताब्दी मे गुजरात के कुछ पल्लीवाल उज्जन तथा पद्मावती नगर होते हुए विदर्भ क्षेत्र में चले गए तथा वहीं बस गये। वे उस समय भी दिगम्बर धर्मानुयायी थे तथा आज भी है।
कुछ लोगो का मत है कि पल्लीवाल जाति प्रारम्भ मे श्वेताम्बर मूर्ति पूजक थी तथा बाद मे इस जाति के कुछ लोग दिगम्बर धर्म को मानने लगे। लेकिन यह बात सही नही है । पल्लीवाल जाति से सबधित प्रचीनतम लेख जो कि पल्लीवाल जाति का दिगम्बर माम्नायी होना सिद्ध करते है क्रमश , वि स 1063, वि स 1261, वि. स 1390, प्रादि उपलब्ध है। प्राचीनतम् लेख जो पल्लीवाल जाति का श्वेताबर मूर्ति पूजक होना सिद्ध करते हे, वे क्रमश वि स 1287, वि स 1:98, वि स 1303 आदि के है। कुछ लोग पल्लकीय गच्छ को पल्लीवाल जाति से सबधित मानते हैं। ऐसे प्राचीनतम् लेख जिनमे पल्लकीय गच्छ का उल्लेख पाता है, क्रमश वि स 1144, वि स 1151 तथा वि स 1201 के ही उपलब्ध है।
कन्नौज क्षेत्र के पल्लीवाल जो कि मूल पल्लीवालो में से है, पहले भी दिगम्बर धर्मानुयायी थे तथा प्राज भी हैं। उनमे से कभी किसी ने श्वेताम्बर धर्म नहीं अपनाया। इन सब बातो मे हम निश्चत पूर्वक कह सकते है कि पल्लीवाल लोग मूलत दिगम्बर धर्मानुयायी ही थे। लेकिन तेरहवी शताब्दी के अन्त में