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समाज दर्शन
ही जुडी नहीं रही है। जाति के विघटन से पूर्व सभी पल्लीवाल व्यापार करते थे। इसी कारण पल्लीवालो ने उस समय के प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्रो को ही अपना निवास स्थान बनाया । प्राचीन समय मे जल मार्ग (नदी) द्वारा बहुत यातायात होता था। चन्द्र वाड भी यमुना नदी के तट पर स्थित है तथा उस समय यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। कुछ पल्लीबाल कन्नोज मे रहते थे तथा वे भी व्यापार में सलग्न थे।
जाति के विघटन के पश्चात कुछ पल्लीवाल पट्टन या पाटन (मुजरात) चले गये। पाटन भी एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। दूसरी ओर कुछ पल्लीवाल चन्द्रवाड से कुछ दूर यमुना नदी के तट पर पर ही स्थित कचौडाघाट चले गये। कचौडाघाट । भी व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र था तथा यहाँ पर नील बनाने तथा कपडो की रगाई का मुख्य कार्य था। इस प्रकार अधिकतर पल्लीवाल बडे-बडे व्यापारिक केन्द्रो से जुड़े रहे तथा व्यापार इनका मुख्य व्यवसाय बना रहा। कुछ पल्लीवाल व्यापार के साथ-साथ खेती-बाडी से भी सम्बन्धित थे, उनमे से कई बडे जमीदार थे। कुछ पल्लीवाल राज्यो के पदाधिकारी भी रहे।
अठारहमी शताब्दी मे गुजरात के अधिकतर पल्लोकाल पुन पूर्वी राजस्थान की ओर आ गये। तब इन्होने खेती को अपना मुख्य व्यवसाय बनाया। इसके साथ ही कुछ पल्लीवाल बहुत प्रसिद्ध व्यापारी भी थे तथा रूई और कपास का बड़े पैमान पर व्यापार करते थे।
जो लोग व्यापार के उद्देश्य से गुजरात छोडकर विदर्भ क्षत्र मे चले गये। उन्होने भा बाद में खेती को अपना मुख्य व्यवसाय बना लिया।