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चतुर्थ-अध्याय
समाज-दर्शन [४.१] चौरासी जातियों एवं साढ़े बारह प्रकार की
जातियों में पल्लीवाल जाति का स्थानजैन समाज मे चौरासी जातियाँ प्रसिद्ध है। समय-समय पर विभिन्न लेखको तथा कवियो ने इन जातियो को गिनाया है। अठा. रहवी शताब्दी के विद्वान कवि पडित विनोदीलाल जी अग्रवाल ने वि स 1750 मे 'फूलमाल-पच्चीसी' नामक पद्यात्मक रचना की है। इसमे उन्होने चौरासी जैन जातियो का वर्णन किया है । इन जातियो मे एक पल्लीवाल जाति भी है। कविवर विनोदीलाल जी ने लिखा है कि एक बार इन सब जातियो के लोग गिरनार जी मे नेम प्रभु को फूलमाल लेने के लिए एकत्रित हुये। परस्पर यह होड लगी कि प्रभू की जयमाल मै ले। दूसरा कहता था कि पहले मैं लूं तथा तोसरा चाहता था कि फूलमाल मुझे मिले। इस होड मे सभी जातियों अपने वैभव के अनुसार बोली छुडाने के लिए तैयार थी। फूलमाल लेने की जिज्ञासा ने जन साधारण मे अपूर्व जागृति की लहर उत्पन्न कर दी और एक से बढकर एक फूलमाल की बोली देने को तैयार हो गया। उन सबमे से किसी एक को ही फूलमाल मिली। आगे विनोदीलाल जी लिखते है कि यद्यपि 16वी शताब्दी के विद्वान ब्रह्मने मिदत्त ने भीफूलमाला-जयमाल का निर्माण किया था जो सक्षिप्त, सरल और सुन्दर है । जोस ज्जन इस महर्दिक फूलमाल को अपनी लक्ष्मी देकर लेते है उनके सब दुख दूर हो