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पल्लीवाल जाति के ऐतिहासिक प्रसग
इससे पहले सिंहाक के काका सिंह को माज्ञा से सम्वत् 1420 चैत्र सुदी 10 के दिन पाटण मे तपागच्छ के प्राचार्य जयानन्द सूरि तथा प्राचार्य देव सुन्दर सूरि का प्राचार्य पद
महोत्सव किया। (10) सोनी प्रथिमसिह पल्लीवाल का पुत्र साल्हा प्राचार्य देव
सुन्दर सूरि के उपदेश से सवत् 1442 का भादवा सुदी 2 सोमवार को खभात मे 'पचाशक वृत्ति' ताडपत्र पर लिखवाई।
उक्त धार्मिक घटनामो का वर्णन पल्लीवाल जैन इतिहास' की भूमिका मे श्री लालचन्द्र भगवान गाधी ने भी किया है।
उपर्युक्त लेखो तथा मूर्ति लेखो से निम्न निष्कर्ष निकलते है(1) बि स 1052 के पास पास पल्लीवाल जाति चन्द्रवाड (वर्त
मान फिरोजाबाद के निकट) मे रहनी थी तथा वह दिगम्बर जैन धर्मानुयायी थी।
(देखे - 'चन्द्रवाड और राजा चन्द्रपाल) (2) पल्लीवाल जाति के बहुत से लोग चौदहवी शताब्दी मे पूरे
गुजरात मे फैल गये थे। ये लोग मुख्यत गुजरात के पाटन, मेहसाना, अहमदाबाद, काठियावाड भरूच तथा सूरत आदि स्थानो पर रहते थे। यहां रहने वाले पल्लीवालो मे जैन धर्म के दोनो आम्नायो को मानने वाले थे। कुछ लोग
स्वेताम्बर थे तथा कुछ दिगम्बर।। (3) गुजरात के कुछ पल्लीवाल सोलहवी शताब्दी में अपनी जाति
की मूल धारा से अलग हो गये तथा उज्जन और पद्मावती नगरो की ओर चले गये। नागपुर से प्राप्त मूतियो पर गुर्जर पल्लीवाल, उज्जैनी पल्लीवाल तथा पद्मावती पल्ली