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पल्लोवाल जाति के ऐतिहासिक प्रसग
जातियो से रहा है । इन लेखो में भी मन्य जाति के नामोल्लेख के साथ पल्ली गच्छ या पल्लकीय गन्छ या पल्लीवाल गच्छ का नाम भो पाता है।
श्री दौलतसिंह जी लोढा कृत 'पल्लीवाल जैन इतिहास' मे भी पल्लीवाल श्रेष्ठि बन्धुप्रो द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाओ का परिचय दिया गया है, वह निम्नवत् है(1) श्री शञ्जय तीर्थ-वि०स० 1383 वैसाख कृष्णा 7 सोम
वार को पल्लीवाल ज्ञातीय पदम की पत्नी कील्हण देवी के श्रेयार्थ पुत्र कोका द्वारा कारित श्री महावीर प्रतिमा श्री गौडी पार्श्वजिनालय में विराजमान है।
(जैसलमेर नाहर लेखाक 657) (2) प्रभास पत्तन--वि स 1339 वैशाख शु० (2) शनिश्चर
को पल्लीवाल ज्ञातीय ठ० पासाढ ठ० प्रासापल द्वारा पत्नी जाल्ह (ण) के श्रेयार्थ एक जिन प्रतिमा श्री बावन जिनालय की चरण चौकी में विराजमान है।
(जैसलमेर नाहर लेखाक-1791) इसी बावन जिनालय की चरण चौकी में द्वितीय प्रतिमा श्री पार्श्व नाथ की वि स 1340 ज्येष्ठ कृष्णा 10 शुक्रवार को प्रतिष्ठित, जिसको पल्लीवाल बीरबल के भ्राता पूर्णसिंह ने पन्नी वय जलदेवी पुत्र कुमरसिह, कैलि (कालूसिह) भा० ठ० स्वकल्याणार्थ करवाई, विराजमान है ।
(जैसलमेर नाहर लेखाक-1792) (3) शोयालकोट (काठियावाड़)-वि स 1300 वैशाख कृ. 11
बुद्धवार को श्री सहजिगपुरवासी पल्लीवाल व्यवहारी देदा पत्नी कडूदेवी के पुत्र परी० महीपाल, महीचन्द्र के पुत्र रतनपाल विजयपाल द्वारा व्य०शकर पत्नी लक्ष्मी के पुत्र सघपति मूधिग देव के स्वपरिवार सहित देवकुलका युक्त श्रीमल्लिनाथ