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पल्लीवाल जाति के ऐतिहासिक प्रसग
39 चद्रवाड नगर पर टूट पड़ी। नगर में प्रातक फैल गया। सेना ने बहुत लूट-पाट की। यहां से गौरी लूट का सामान पन्द्रह सौ ऊँटो पर लादकर ले गया। इस तरह चद्रबाड नगर उजड गया। यहाँ के पल्लीवाल तथा चौहान वशी लोगो सहित बहुत से अन्य लोग अन्यत्र विस्थापित हो गये । कुछ चौहान नशी लोग मारवाड (राजस्थान) की ओर भाग गये।
राजा जयचन्द का पुत्र राजा हरिश्चन्द्र कन्नौज मे अपना सैन्य सचालन कर रहा था । उसने वहाँ के किले को अपने हाथो से जाने नही दिया ।, अत कन्नौज मे रहने वाले सभी लोग वहाँ सुरक्षित थे।
इस घटना के बाद भी इस नगर पर कई विपदाये आयी। सन् 1389 मे सुलतान फिरोजशाह तुगलक ने चन्द्रवाड तथा उसके निकटस्थ हतिकात और रपरी पर अधिकार कर लिया। उसके पोते तुगलक शाह ने चन्द्रवाड को बिल्कुल नष्ट कर दिया। कई मन्दिरो को तुडवाया। बहुत सी जैन मूर्तियो को यमुना नदी की धारा के बीच छिपा कर बचा लिया गया, लेकिन जो शेष रह गयी, उनको उसने नष्ट करवा दिया।
___इसके पश्चात् भी कई परिवर्तन आये। कई बार युद्ध भी हुये। इसी कारण धीरे-धीरे चन्द्रवाड और उसके आसपास के नगर रपरी तथा हस्तिकान्त (हतिकात) प्रादि स्थान, जहाँ कभी जैनो का बर्चस्व और प्रभाव था, अपना प्रभाव खोते गये। उनकी समृद्धि नष्ट हो गयी। ये विशाल नगर सिकुडते गये तथा प्राज छोटे-छोटे गाँव बन कर रह गये है। वहाँ बहुत से प्राचीन खण्डहर बिखरे पडे है जो इन नगरो के प्राचीन वैभव की कहानी बताते है।