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________________ पल्लीवाल जैन जाति की उत्पत्ति एव विकास विशिष्ट पुरुषो नामकरण भी होना माना जाता है। परिवार में के नाम पर भी गोत्र स्थापित हो जाया करते थे । कुछ गोत्रो की उत्पत्ति जाति को उत्पति मे पूर्व तथा कुछ गोत्रो की उत्पत्ति जाति की उत्पत्ति के बाद हुई है, ऐसी सामान्य धारणा है । 21 कुछ जातियाँ ऐसी भी है जिनमे गोत्र नहीं है, जैसे- पद्मावतो पुरवाल, गुजरात के मेवाडा, ओसवाल, श्रीमाल, सेनवाल आदि जैन जातियाँ | कुछ जातियो के गोत्र आपस में एक दूसरे मे मिलते है । जैसे-परवार, गहोई तथा अग्रवाल जाति के गोत्र एक दूसरे मे मिलते है । जब कभी किसी गोत्र विशेष के परिवारो की संख्या कम रह जातो थी तब ये परिवार दूसरे गोत्रो मे सम्मिलित हो जाते थे तथा स्वय के गोत्र का अस्तित्व ही समाप्त कर लेते थे । पल्लीवाल जाति में गोत्रो की उत्पत्ति के बारे में एक स्थान पर ऐसा लेख मिलता है कि धनपतिशाह के दो पुत्र गुंजा तथा सोहिल थे। इन दोना के कुन वामन पुत्र थे । उन पुत्रो के नाम पर ही जाति में विभिन्न गोत्रो की उत्पत्ति हुई । लेकिन ऐसा मानना गलत है। यह हो सकता है कि जाति के कुछ गोत्रो के नाम उनमे से कुछेक विशिष्ट योग्यता वाल पुत्रो के नाम पर पडे हो, लेकिन सभी गोत्रो का सम्बन्ध इन पुत्रो से जोडना अनुचित है । इसके कई कारण है । धनपतिशाह का समय विक्रम की सत्रहवी गताब्दी का मध्य है, लेकिन कुछ गोत्रो का उल्लेख चौदहवी शताब्दी के मूर्तिलेखो मे मिलता है। विशेषकर वरेडिया (वरहुडिया ) गोत्र का उल्लेख प्रचुर मात्रा मे मिलता है । कुछ गोत्र निश्चित रूप से गाँवो के नाम पर पडे है । जैसे- सलावदिया, काश्मीरिया तथा गुवालियरे आदि । तथा कुछ गोत्र काफी नये भी है । पल्लीवाल जाति मे मुख्यत छह घटक सम्मलित है । वे है - (1) जगरौठी - अलवर तथा श्रागरा क्षेत्र के पल्लीवाल,
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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