________________
पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
20
वाल,
भागो मे बँट गये - कन्नौज क्षेत्र के पल्लीवाल, मुरैना क्षेत्र के पल्लीजगरौठी तथा प्रागरा क्षेत्र के पल्लीवाल और नागपुर क्षेत्र के पल्लीवाल | बहुत समय तक तो यही माना जाता रहा कि ये चारो घटक अलग-अलग जातियाँ है, लेकिन ऐसा मानना सही नही है । पल्लीवाल जाति के लोग विभिन्न परिस्थितियो मे अलगअलग समूहो में बँट गये, मूलत ये चारो एक ही जाति के अग है । इनके गोत्रो के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि बहुत से गोत्र चारो घटको मे मिलते है। निश्चित ही ये गोत्र जाति के विघ टन के पूर्व के है । जो गोत्र प्रापस मे नही मिलते, वे या तो इन घटको के विघटन के बाद के है, अन्यथा उन गोत्रो के वशज अब अन्य घटको मे रहे नही ।
आज हम पल्लीवाल जाति को जिस रूप मे देखते है उसम पल्लीवालो के विभिन्न घटको के साथ-साथ सिकन्दरा (आगरा ), पालम ( दिल्ली के निकट ) तथा अलवर के जैसवाल तथा सैलवाल जाति के लोग भी सम्मिलित है। इन जातियो ने लगभग 150 वर्ष पूर्व से ही पल्लीवाला मे विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लिये थे । अब ये पल्लीवाल जाति के ही अभिन्न अंग बन गये है। इन जातियो ने भी स्वय को पत्नीवाल जाति मे विलीन कर लिया है। तथा अपना अलग अस्तित्व समाप्त कर लिया है। नागपुर क्षेत्र के पल्लीवालो से बाकी पत्लीवालो का कोई सम्बन्ध अब नही रहा है, इसका मुख्य कारण दूरी है। मातृभाषा तथा रहन-सहन में भी बहुत अन्तर है ।
[२.६] पल्लीवाल जाति के गोत्र
अधिकतर जातियो मे विभिन्न गोत्र पाये जाते है । जिस प्रकार से जातियो का नामकरण वशो, प्रान्तो नगरो तथा व्यवसायो आदि के आधार पर माना जाता है उसी प्रकार से गोत्रो का