SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति एव विकास 15 दक्षिण की तेलुगू तथा तमिल भाषा मे 'पल्ली' शब्द का अर्थ 'छोटे-गाँव' से होता है । आज भी छोटे-छोटे गांवो के नाम के पीछे पल्ली भब्द लगाने का प्रचलन है। प्राचीन काल मे एक पल्ली (छोटे गाँव) मे एक ही वर्ण के लोग रहते थे। कई-कई पल्लियो के लोग एक ही वर्ग के तथा एक ही धर्म को मानने वाले हुआ करते थे। अत उन मभी पल्लियो के सब लोग, जो जैन धर्मानुयायी थे तथा उनका वर्ण वैश्य था, कालान्तर में पल्लीवाले कहे जाने लगे तथा वे ही बाद में पल्लीवाल जाति के नाम से प्रसिद्ध हो गये । प्रत पल्लोवालो की उत्पत्ति दक्षिण भारत से माननी चाहिए। प्राचार्य कुन्दकुन्द पल्लीवाल जात्यत्पन्न थे (19,10) उनका जन्म दक्षिण के तामिल प्रदेश के कुरुमराई नामक ग्राम में हुआ था ।।36) प्राचार्य श्री ने बहुत वर्षों तक तामिल प्रदेश में ही भ्रमण किया तथा धर्म प्रभावना की। उनकी साधना स्थली भी तामिल प्रदेश के जगल ही थे । इससे भी यही सिद्ध होता है कि पल्लीवालो का सम्बन्ध दक्षिण के तामिल प्रदेश से रहा है। प्रत पल्लोवाल जाति का उद्गम स्थान तामिल प्रदेश ही रहा है। पल्लीवाल जाति को उत्पत्ति के समय के सम्बन्ध में कुछ विद्वानो का मत है कि इसकी उत्पत्ति ग्यारहवी-बारहवी शताब्दी मे हुई। लेकिन यह मानना गलत है। पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति तो बहुत पहले ही हो चुकी थी। इस जाति मे श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनो सम्प्रदायो को मानने वाले लोग है। तेरहवीचौदहवी शताब्दी के कई लेख तथा मति-लेख उपलब्ध है। इनसे पता चलता है कि उस समय जाति के कुछ लोग दिगम्बर प्राम्नाय को मानने वाले थे तथा कुछ लोग श्वेताम्बर प्राम्नाय को मानते थे। यानि कि तेरहवी शताब्दी के अन्त में इस जाति मे जैन धर्म की दोनो प्राग्नायो को मानने वाले लोग थे। यदि पल्लावाल जाति की उत्पति ग्यारहवी-बारहवी शताब्दी मे माने तब ऐसा होना तो असम्भव है कि जाति की उत्पत्ति के समय से ही या उत्पत्ति के
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy