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(T) अवाशिष्ट है इसकी कोई प्रमानिक जानकारी नहीं मिलती लेकिन जहाँ तक मुझे जानकारी है कि वर्तमान मे भी 50 से भी अधिक जातिया मिलती है जो समाज की विभिन्न गतिविधियो मे भाग लेती रहती है।
पल्लीवाल जैन जाति भी इन्ही 84 जातियो मे गिनी जाती है और 84 जातियो का नामोल्लेख करने वाले सभी लेखको ने पल्लीवाल जाति का उल्लेख किया है । यह जाति वर्तमान मे प्रमुख रूप से राजस्थान, उनर प्रदेश, मध्य प्रदेश एव महाराष्ट्र प्रान्त मे मिलती है । जयपुर के प० बख्तराम साह ने अपने बुद्धि विलास में इन जातियो को साप कहा है और उनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध मे निम्न कारण लिखा है--
आग तो श्रावक सबै, एकमेक ही होत । लगे चलन विपरीत तब। थरपे खाय रू गोत ।।68।। बख्त राम ने इनही साप और गोत्रो की उत्पति ग्राम और नगर के नाम से होना लिखा है। कवि ने जाति को स्वय लिखा है-- ___चर्या वहै तारे स्वय ए, ग्राम नगर के नाम
इमी कवि ने पल्लीवाल जाति को प्रथम 32 जातियो मे गिनाया है। उक्त वर्णन से हमे दो प्रश्नो का उत्तर मिलता है। प्रथम जातियो की उत्पत्ति भगवान महावीर के निर्माण के बाद हुई और उनमा नामकरण किसी नगर एवं ग्राम के नाम पर हुआ । जैसे ग्व डेला के ग्वाडेलवाल, अग्रोहा मे अग्रवाल, बघग से बघेरवाल आदि । और इसी आधार पर पालो से पालीवाल जाति की उत्पति मान ली गयी। लेकिन प्रस्तुत इतिहास मे बिद्वान लेखक ने अपना भिन्न मत व्यक्त किया है कि पल्लीवाल जाति की उत्पति उत्तर भारत के पाली नगर से न होकर दक्षिण भारत