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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
धारण कर ली। आज भी आप स्थान-स्थान पर विहार करके मनुष्यो को धर्मोपदेश दे रहे है। ___ आपको कविता बनाने को बहत रुचि थी। ब्रह्मचारी अवस्था मे आपने चौबीसो भगवान के पूजन को अलग-अलग रचना की तथा कुछ भजन भी लिखे। पूजन की पुस्तक तो प्रकाशित भी हो चुकी है।
आपने अपने आगरा चातुर्मास के समय पल्लीवाल समाज के वयोवृद्ध श्री किरोडीलाल जी को विधिवत समाधिमरण करवाया। श्री किरोडीलाल जी को उनके अन्तिम समय मे दिगम्बर दीक्षा ग्रहण करवाई तथा उनका नाम मुनि क्षमासागर रखा। मुनि क्षमा सागर जी का दिगम्बर दीक्षा ग्रहण करने के 18 दिन बाद स्वर्गवास हो गया । (5-28) श्री सुगनचन्द जी जैन
आपका जन्म आगरा मे सन् 1917 को हुआ था। आपके पिता का नाम श्री गोकुन वन्द जैन था। जब आपकी प्रायु लगभग 20 वर्ष की थी तब ही आपके पिता का स्वर्गवास हो गया। अत प्राप पर ही पूरी गृहस्थी का बोझ आ गया । आपने आगरा मे ठेकेदारी का व्यवसाय प्रारम्भ किया । कुछ वर्षो तक तो तो आप इस कार्य मे रहे, लेकिन आपको यह कार्य अच्छा नहीं लगा। आप आगरा छोडकर जयपुर चले गये तथा वही पर नौकरी प्रारम्भ कर दी। आप अपने अन्तिम समय तक जयपुर ही रहे । अापका सन् 1967 मे आकस्मिक निधन हो गया।
अपने पिता की भाँति आपको भी जैन धर्म में विशेष रुचि थी। पल्लीवाल जाति के यथासम्भव आप ही पहले व्यक्ति रहे है जिन्होने अपने घर मे जैन शास्त्रो तथा पुस्तको की लाइब्रेरी खोली। आपने इस लाइब्रेरी का नाम अपने पिता के नाम पर 'गोकुल लाइब्रेरी' रखा। इसके अन्तर्गत उस समय उपलब्ध