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विशिष्ठ व्यक्तियो का सक्षिप्त परिचय
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जितना हो सका स्वय दान दिया। आप धार्मिक कार्यों के लिए भेंट स्वीकार करना अच्छा नही मानते थे। आपके पाजीवन छना पानी पीने का नियम था। इसीलिए आप हमेशा अपने साथ एक छन्ना रखते थे। जब कभी छन्ना ले जाना भूल जाते, तो वे कहीं पानी नही पीते थे।
आपने कई पत्र-पत्रिकामो का भी सपादन किया। समाज की पत्रिकामो 'पल्लीवाल-बन्धु' तथा 'श्री पल्लीवाल जैन पत्रिका' का प्रापने कई वर्षों तक सपादन किया । आपके बहुत से लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकामो मे प्रकाशित हो चुके हैं। आपने तीन पुस्तके भी लिखी है। वे है- 'भगवान महावीर और उनका दिव्य सन्देश', 'जैन धर्म के प्रवर्तक' तथा 'भगवान आदिनाथ'। 'भगवान आदिनाथ' अभी नक अप्रकाशित ही है ।
आप विभिन्न शिक्षा संस्थाप्रो की कार्यकारिणी से भी सम्बन्धित रहे । कुछ समय तक आप आगरा कॉलेज के ट्रस्टी रहे। समाज द्वारा सचालित 'करतूरी देवी जैन विद्यालय, आगरा' के आप बहुत समय तक व्यवस्थापक रहे ।
प्रापका स्वर्गवास 24 अप्रैल सन् 1978 को प्रागरा मे हो गया। (5-27) मुनि श्री श्रुति सागर जी
आपका जन्म वि सवत् 1971 मे ग्वालियर के निकट मोहना नामक ग्राम मे हुआ था। आपके गृहस्थ जीवन का नाम श्री दयाराम था। आपके पिता का नाम श्री टेकचन्द तथा माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी था । युवावस्था मे पाप मुरैना आकर रहने लगे तथा वही पर हलवाई का व्यवसाय करते थे। आपको प्रारम्भ से ही धर्म के प्रति विशेष रुचि थी। इसी के फलस्वरूप आपने सातवी प्रतिमा धारण कर ली। तदुपरान्त 26 मई सन् 1974 को मापने प्राचार्य कुन्थ सागर जी से दिगम्बर दीक्षा