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विशिष्ठ व्यक्तियो का सक्षिप्त परिचय
बागरा के रहने वाले थे । प्रापका जन्म सन् 1898 ई में हुआ था । आपकी धार्मिक कार्यों में विशेष रुचि थी । श्राप नित्य प्रति धूलिया गज प्रागरा स्थित ' प दि जैन मन्दिर मे पूजा-पाठ करने के लिए आते थे तथा स्वाध्याय भी करते थे । श्रापके अन्तिम दिनों मे नेत्र ज्योति नष्ट प्राय हो गई थी । उसके बाद भी आप धार्मिक क्रिया का पूर्ण पालन करते थे । सन् 1979 में आपके पैर में बहुत चोट लग गई थी तथा वहा पर फोडा बनकर पक गाथा | माते प्रग्रेजो दवाइयाँ लेने से साफ इन्कार कर दिया तथा दिनाक 14 अक्टूबर 19:9 को समाधि पूर्वक मरण करने का निश्चय किया । श्रापने क्रम से आहार, दूध तथा जल का त्याग किया। दिनाक 23 अक्टूबर को जल का भी त्याग कर दिया । फिर उस समय उपस्थित मुनि श्री श्रुत सागर जी महाराज से दिनाक 25 अक्टूबर 199 को दिगम्बर दीक्षा धारण की तथा अब वे मुनि क्षमासागर हो गये । श्रापने बहुत धैर्यपूर्वक तथा विवेक सहित समाधि ली। 18 दिन उपरान्त दिनाक 1 नवम्बर सन् 1979 ( कार्तिक सुदी 11 ) को इस नश्वर शरीर को त्याग दिया। आगरा के अन्दर समाधिमरण का यह प्रथम अवसर था । आपके अन्तिम दर्शनार्थ हजारो जैन तथा जैनेतरो को प्रतिदिन भीड लगी रहती थी । इससे जैन धर्म की बहुत प्रभावना हुई ।
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( 15-21 ) श्राविका सर्वती बाई
पल्लीवाल जाति में आप एक महान् महिला सन्त हुई है । आपके पिता का नाम श्री सावलदास जी था तथा वे प्रागरा के रहने वाले थे । सवंती बाई का जन्म सन् 1900 ई. के लगभग हुआ था । आप शादी के कुछ दिनो बाद ही विधवा हो गई थी । आप अपने पिता के घर ही रहती थी । उन दिनो भारत के स्वतन्त्रता संग्राम का बहुत जोर था । श्राप भी इससे बहुत