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विशिष्ठ व्यक्तियों का सक्षिप्त परिचय
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की प्रसारता को विचारते हुये प्रापने क्षुल्लक दीक्षा धारण कर ली । एक दिन प्राप मन्दिर जी मे भगवान का ध्यान कर रहे थे उसी समय आपके मन में एक महान् विचार प्राया तथा भगवान की प्रतिमा के आगे अपने वस्त्र त्याग कर दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली ।
आपने अपने दीक्षा काल मे मध्य भारत में बहुत भ्रमरण किया तथा धर्म का प्रचार किया। आपके धर्मोपदेशो से प्रभावित होकर बहुत से प्रजैन लोगो ने भी जैन धर्म स्वीकार कर लिया । कहते है कि धर्मपुरी (धार) का एक मुसलमान सूबेदार मुनि श्री बहुत प्रभावित हुग्रा तथा अपने क्षेत्र मे पशु हिंसा पर उसने रोक लगा दी ।
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मुनि श्री के जीवन मे कई बार उपसर्ग भी प्राये । एक बार जाडो के दिनो मे सायकाल आप जगल की ओर चले गये तथा एक शिला पर बैठ कर सामायिक करने लगे । ध्यान लगाते हुए आपको बहुत देर हो गई तथा रात्रि का समय हो गया । रात्रि मे मुनि विचरण नही करते है, अत आप इसी कारण उस शिला पर बैठे रहे । रात्रि मे अत्यधिक ठण्ड के कारण आपके शरीर की खाल गल गई, लेकिन आप अपने ध्यान से विचलित नही हुए ।
आपका स्वर्गवास वि० सवत् 1994 के लगभग इन्दौर मे हो गया ।
(15-16) डॉ प्यारेलाल जी
आपका जन्म दौसा (जयपुर) में 19 फरवरी सन् 1888 ई० को हुआ था | आपके पिता श्री मुरलीधर जी वहाँ पर सहायक स्टेशन मास्टर थे | आपने अपनी चिकित्सा सम्बन्धी पढाई आगरा मे सन् 1909 में पूरी करने के बाद सरकारी सेवा ग्रहण करली | आपका अधिकतर समय आगरा में हीव्यतीत हुआ। कुछ समय श्राप कानपुर तथा वाराणसी भी रहे। प्राप सन् 1943 में सेवा