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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास निवासी दीवान सम्मतराम जी की सुपुत्री से सवत् 1952 मे हया। प्रथम आपने सैटिलमैन्ट राज्य अलवर में राज्य सेवा प्रारम्भ की
और पश्चात् डिस्ट्रिक्ट गुडगाँवा व स्टेट पटियाला में भी सर्विस की। सवत् 1961 मे भयानक प्लेग मे पिता व भ्राता की प्राकस्मिक मृत्यु हो जाने से गुडगॉवा की सर्विस छोडकर पुन अलवर राज्य में रिवेन्यू डिपार्टमेन्ट मे मुलाजमत की और उत्तमता से राज्य सेवा सम्पादन करके आपने ऑफिस कानूनगो के पद से सन् 1941 में पेन्शन प्राप्त की।
आपके दो कन्याएं उत्पन्न हुई। पहली कन्या का थोडी आयु के बाद निधन हो गया। दूसरी कन्या जन्म के समय कन्या तथा भार्या का भी देहावसान हो गया। पत्नी की मृत्य के समय आपकी प्रायु मात्र 29 वर्ष की थी, फिर भी आपने दूसरी शादी करने से इन्कार कर दिया। आपने अपने भाई की एक मात्र कन्या का पूरी तरह से लालन-पालन किया तथा उसके पुत्र अमर चन्द को सवत् 1996 मे दत्तक पुत्र के रूप मे स्वीकार किया। ___ आपकी प्रारम्भ से ही धार्मिक कार्यों में विशेष रुचि थी। आपने कई बार तीर्थ यात्राएँ भी की। सेवा निवृत होने के पश्चात् तो आप अपना पूरा समय धार्मिक कार्यो मे ही व्यतीत करते थे। अापने कई पदो की रचनाएँ की। आपकी रचनायो मे 'श्रीचौबीस तीर्थकर पुराण' (पद्य) 'चतुर्विंशति जिन पूजा' (बालकृत) 'नित्य पूजन विधान', तथा 'वाल पद सग्रह' प्रसिद्ध है। जनवरी सन् 1963 मे आपका देहान्त हो गया।
'श्री चौबीस तीर्थकर पुराण' मे आपने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
',रजवाडो मे है सरनाम, अलवर शहर महा सुग्व धाम । तेजसिंह तहाँ है भूपाल, पालत प्रजा सर्व दुख टाल । रजधानी ताकी विस्तार, तहाँ नजामत दश गुलजार । तिनमे एक रामगढ जान, जो है गुनी जनो की खान ।।