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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
चर्चाएँ करने लगे । सन् 1919 में आपने सातवी प्रतिमा धारण कर ली और घर मे रहकर ही अन्त तक धर्म साधन करते रहे | आप अपने अन्तिम समय में काफी बीमार रहे । अन्त मे आपका स्वर्गवास, समाधिमरण युक्त कार्तिक बदी 5 सवत 1981 ( यानि कि 18 अक्टूबर सन् 1924 को दिन के 2-45 बजे णमोकार मन्त्र व रिहन्त का मनन करते करते हो गया ।
आपके तीनो पुत्र मनोहरलाल जी, रोशनलाल जी तथा चन्दूलाल जी सुशिक्षित तथा अच्छे पदो पर कार्यरत थे । श्री रोशन लाल जी सन् 1919 से सन् 1935 तक लाहौर के दिगम्बर जैन मन्दिर जी के मन्त्री पद पर कार्य करते रहे ।
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लाला लालमन जी की प्रेरणा से कई धार्मिक कार्य बिभिन्न स्थानो पर हुये | भीलवाडा मे पचो से कहकर औषधालय खुलवाया, वहाँ के मन्दिर मे बहुत सारे ग्रन्थ मँगवाये । विजयनगर (मेवाड ) मे जिन चैत्यालय बनवाया जो बाद में एक शिखर बन्द प्रालीशान जिन मन्दिर बन गया । वहाँ भी शास्त्र भण्डार स्थापित करवाया । देवलिया के जिन मन्दिर मे नित्य पूजन का बन्दोबस्त करवाया । इस प्रकार लाला लालमन जी मात्र पल्लीवाल समाज के ही नही बल्कि पूरे जन समाज के लिए एक प्रादश पुरुष थे I
(5-10) पं० चिरन्जीलाल जो
आप पण्डित नन्नूमल जी के समकालीन थे । आप भी आगरा के ही निवासी थे । श्रापका जन्म मार्गशीर्ष सुदी 11 सवत् 1924 को हुआ था । प० नन्नूमल जी के मरणोपरान्त आपने श्रागरा के 'दिगम्बर जैन विद्यालय' का कार्यभार सँभाला । धूलिया गज (आगरा) स्थित श्री पल्लीवाल दिगम्बर जैन मन्दिर' मे आप समय-समय पर शास्त्र प्रवचन करते रहते थे ।
आपने 'पल्लीवाल जैन सम्मेलन' को बहुत सी सभाओ का सभापतित्व किया। आपकी धार्मिक वीद्वता तथा सामाजिक