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________________ विशिष्ठ व्यक्तियो का सक्षिप्त परिचय 105 आपके पिता लाला लोकमन जी जैन धर्म के पक्के श्रद्धानी थे और साधारण सी परचूनी की दुकान करते थे। आपने बाल्यावस्था मे रामगढ के देवनागरी व उर्दू के स्कूल मे समयानुकूल उच्च शिक्षा प्राप्त करके संस्कृत का भी अच्छा अभ्यास कर लिया था। आपका विवाह स. 1934 मे प्रागरा निवासी लाला घासीराम जी की सुपुत्री से हुआ था। शिक्षा पाने के बाद आप कुछ समय के लिए रियासत अलवर मे पटवारी हो गये। उन्ही दिनोआपके श्वसुर लाला घासीराम जी बदली होकर लाहौर मे गवर्नमेट प्रेस में आ गये और उन्होन आपको अग्रेजी व फारसी की शिक्षा दिलाने के लिए लाहौर मे सन् 1880 मे बुला लिया और फारसी का मिडिल पास कराकर अग्रेजी पढने के लिए रग महल स्कूल में दाखिल करवा दिया। सन् 1882 मे सरकार की तरफ मे डाक्टरी मे पढने वाले लडको को दस रुपये माहवार वजीफा दिया जाता था और उर्दू मिडिल तक की शिक्षा वाले लडके लिये जाते थे। आपको भी लाला घासीराम जी ने डाक्टरी श्रेणी मे दाखिल करवा दिया। जब सर्जरी पढने वाले कमरे मे सब विद्यार्थी एकत्रित हुये और एक लाश पोस्ट मार्टम के लिये लाई गई तब पोस्टमार्टम होते देखकर आपको डाक्टरी पेशे से घृणा हो गई और यहाँ से अपना नाम कटवा दिया। तब इनको अग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक स्कूल में दाखिल करवा दिया। लाला लालमन जी की इस बात से लाला घासीराम जी बहुत नाराज हुये । कुछ दिनो बाद जब लाला घासीराम जी का शिमला के गवर्नमेट प्रेस के लिए तबादला हो गया तब वे लालमन जी को बिना कुछ बताये शिमला चले गये । इस बात से लालमन जी को बहुत क्षोभ हुना। फिर लाला लालमन जी ने लाला घासीराम जी के एक मित्र विलियम साहब की मदद से प्रेस का काम सीखा तथा दस
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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