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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
1855 के मध्यवर्ती समय में हाथरस के निकट सासनी नामक ग्राम में हुआ था । इनकी जन्मपत्री सन् 1857 के गदर के समय भागते हुये इनके पुत्रादिक से गिर पडी, इस कारण इनकी जन्मतिथि का निर्णय होना कठिन है, परन्तु इनके सुपुत्र श्री टीकाराम जी के कथनानुसार पडित जी का जन्म विक्रम् सवत् 1855 या 1856 की साल हुआ था | आपके पिता का नाम टोडरमल्ल था । श्रापकी जाति पल्लीवाल और गोत्र गगीरीवाल था, परन्तु प्राप 'फतहपुरिया' नाम से उल्लेखित किये जाते थे । प्रापके पिता के एक भाई थे, उनका नाम चुन्नीलाल था तथा वे श्री टीकाराम जी से छोटे थे । ये भी हाथरस मे ही रहते थे । ये दोना भाई कपडे का व्यापार करते थे ।
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आपका विवाह अलीगढ निवासी सेठ चिन्तामणी जी की सुपुत्री के साथ हुआ था । श्रापके दो पुत्र थे, जिनका जन्म क्रमण सवत् 1882 और सवत् 1886 मे हुआ था। उनके बड़े पुत्र का नाम टीकाराम था तथा ये लश्कर मे रहते थे । छोटा पुत्र प्रसमय मे ही अपनी स्त्री और एक पुत्री को छोडकर परलोकवासी हो
गया था ।
यद्यपि इनके पिता कपडे का व्यवसाय करते थे, परन्तु बचपन से ही इनकी रुचि विद्याध्ययन में ही विशेष थी, इस कारण इनके पिता ने भी हर्ष के साथ इन्हे विद्याध्ययन में ही लगे रहने दिया, किन्तु इन्होने किस गुरु के पास विद्याध्ययन किया, इसकी कोई जानकारी नही है ।
आपने थोडे दिन हाथरस मे ही वजाजी का कार्य किया तथा बाद मे आप अलीगढ रहने लगे थे । सवत् 1882 या 83 मे मथुरा के सुप्रसिद्ध सेठ राजा लक्ष्मणदास जी सी० आई० के पिता सेठ मनीराम जी प० चपालाल जो के साथ कारणवश हाथरस गये । वहाँ उन्होने मन्दिर जी मे कविवर को गोम्मटसार का