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विशिष्ठ व्यक्तियों का सक्षिप्त परिचय
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म्बर और दिगम्बर दोनों माम्नायो के लिए एक सा आदर भाव था। यदि ऐसा नहीं होता तो वे दोनो आम्नायो के उद्धार की बात नही सोचते । एक ओर तो श्वेताम्बर मूर्तियों की प्रतिष्ठाएँ करायी तथा दूसरी ओर भगवान महावीर की दिगम्बर प्रतिमा के दर्शन किये तथा मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। भगवान महावीर को यह प्रतिमा मूलत एव सर्वत. दिगम्बर प्रतिमा ही है। इससे तो यही सिद्ध होता है कि दीवान जोधराज दिगम्बर आम्नाय के प्रति अधिक उदार थे। वास्तव में होता यह है कि यदि कोई भी राजा या उच्च-पदाधिकारी अधिक लोकप्रिय हो जाता है तो सभी धर्मों वाले उसे अपने धर्म का मानने वाला कहते है। उदाहरण लिए राजा श्रेणिक को ही ले लीजिए। उसे जैन, बौद्ध तथा हिन्दू सभी अलग-अलग अपने धर्म का मानने वाला कहते हैं । वस्तुत, जो भी लोकप्रिय बडा राजा या अधिकारी होता है वह सभी धर्मों के प्रति समान प्रादर भाव रखता है। यही बात दीवान जोधराज के लिए भो समझनी चाहिए। (5-5) कविवर ५० दौलतराम जी
दौलतराम नाम के दो विद्वान हुए है। इनमे से प्रथम बसवा निवासी थे। ये महाराजा जयपुर की सेवा में उदयपुर रहते थे। वही रहते हुए इन्होने कितने ही ग्रन्यो की रचना की, उनमे पद्मपुराण भाषा, प्रादि पुराण भाषा, पुण्याश्रव कथा कोष, प्राध्यात्म बारहखडी. जीवधर चरित भाषा, जैन क्रियाकोष आदि मुख्य है । ये अठारहवी शताब्दी के विद्वान थे।
दूसरे दौलतराम हाथरस के निवासी थे तथा पल्लोवाल जाति के थे। ये अपने समय के अद्वितीय आध्यात्मिक कवि थे। 'छहढाला' नामक महान रचना इन्ही की है। हम इन्ही के जीवन का पक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत करेगे।
कविवर प० दौलतराम जी का जन्म सम्वत् 1860 और