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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
एक किवदन्ति के अनुसार महाराजा केसरीसिंह मापसे अप्रसन्न हो गये। उन्होने आपको मृत्यु दण्ड की सजा दे दी। महाराजा की आज्ञानुसार दीवान जोधराज को तोप के सामने खडा कर दिया गया। जैसे ही तोप दागो जाने वाली थी कि दीवान जोधराज ने चादनपुर की अतिशय युक्त भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा का ध्यान लगाया तथा सकल्प किया कि 'यदि मैं जीवित रहा तो मर्व प्रथम भगवान महावीर के दर्शन करूंगा तथा मन्दिर का जीर्णोद्धार कराऊँगा। इतने मे तोप दाग दी गई लेकिन तोप नही चली। तीन बार यह प्रयास किया गया, लेकिन तीनो बार तोप नही चली। यह बात जब महाराजा केसरीसिह को मालूम हुई तो उन्होने दीवान जोधराज को मुक्त कर दिया तथा वे स्वय दीवान जोधराज के साथ भगवान महावीर की अतिशय युक्त प्रतिमा के दर्शन करने गये । बाद मे दीवान जोधराज ने मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया।
इस घटना का उल्लेख प० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री (बनारस) ने गोरखपुर से प्रकाशित पत्र 'कल्याण' के तीर्थांक (वर्ष 31, सख्या 1) मे प्रकाशित अपने लेख मे भो किया है। लेकिन यह मात्र किवदन्ति है। इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नही है। यह स्पष्टीकरण स्वय प. कैलाशचन्द जी ने जैन सन्देश (मथुरा) के 30 जून 1986 के अंक में अपने सम्पादकीय मे दिया है 140
दीवान जोधराज ने कई मूर्तियो की प्रतिष्ठाएँ भी करायी थी। उनमे से एक मूर्ति मथुरा के राजकीय संग्रहालय मे सुरक्षित है जिसकी प्रतिष्ठा सवत 1826 में कराई थी 41 | श्वेताम्बर समाज का मानना है कि दीवान जोधराज श्वेताम्बर मतावलम्बी थे क्योकि उनके द्वारा प्रतिष्ठापित मूर्ति स्वेताम्बरी है। वस्तुत वे किसी आम्नाथ विशेष के हटी नहीं थे। उनके हृदय मे श्वेता