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विशिष्ट व्यक्तियों का संक्षिप्त परिचय
विद्यानन्द व्याकरण एव नव्य कर्म ग्रन्थो का सपादन ये दो कार्य ही इनकी उद्भट विद्वता का स्पष्ट परिचय करा देने को पर्याप्त हैं। वि० स० 1323 में इन दोनो नातामो के तेज तप, सबम एवं शास्त्राग्यास, विद्वतादि से प्रसन्न होकर श्री विद्यानन्द मुनि को सूरि पद और धर्मकीर्ति को उपाध्याय पद प्रदान किया। वि० स. 1327 मे श्री देवेन्द्रसूरि का मालवा मे स्वर्गवास हो गया। उस दिन के ठीक तेरह दिन पश्चात् श्री विद्यानन्द सूरि भी स्वर्गवासी हो गये । उपाध्याय धर्मकीर्ति धर्मघोष सूरि नाम से पद पर बिराजे। श्री धर्मघोषसूरि बडे विद्वान थे और इनका गुर्जर सम्राटो तथा माण्डव के शासको पर अच्छा प्रभाव था। ये विद्वान होने के साथ साथ मन्त्रवादी भी थे। इन्होने बहुत से लोगो को जैन धर्म मे दृढ किया तथा जैन धर्म का प्रचार किया।
श्री धर्मघोष सूरि ने कई ग्रन्थ लिखे । सघाचाराख्य, भाण्यवृत्ति, मुअधमेतिस्तव, कायस्थिति, भवस्थितिस्तवन, चतुर्विशति पर जिनस्तवन 24, शास्त्राशमति नाम का प्रादि स्तोत्र, देवेन्द्रनिशम् नाम का श्लेष स्तोत्र, युययुवा इति श्लेसस्तुतय , और जयऋषभेति प्रादि स्तुत्यादय इनकी ही रचनाएँ हैं । ___ इस प्रकार साहित्य और धर्म की प्रभावना करते हुए श्री धर्मघोष सूरि का स्वर्गवास वि० स० 1357 मे हुआ। प्राचीन जैनाचार्यों में विद्वता एव धर्म-प्रचार-प्रसार की दृष्टि से आपका स्थान बहुत ऊँचा है। (5-3) पं. रूपचन्द
रूपचन्द नाम के तीन विद्वान हुये हैं। पाण्डे रूपचन्द कविवर पडित बनारसीदास जी के गुरु थे। इनका नामोल्लेख प० बनारसीदास जी ने अपने प्रात्म-चरित 'अर्द्ध-कथानक' मे किया है। पाण्डे रूपचन्द जी ने 'समवसरण पूजा' तथा 'केवलज्ञान कल्याण चर्चा' की रचना की तथा इनकी प्रशस्तियो मे अपना पूर्ण परिचय