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पल्लीवाल जन जाति का इतिहास
संख्या में लोग एकत्रित हुआ करते थे। वे इन मीटिगो में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय भी लिया करते थे।
एक अन्य बात जो इससे उजागर होती है वह है कि प्रागरा के पास-पास के किन-किन गाँवो मे पल्लीवाल रहते थे। हमारे बुजुर्गों के क्या-क्या नाम थे, यह भी पता चलता है । __पल्लीवाल जाति के सामाजिक रीति-रिवाजो से सम्बन्धित 'पल्लीवाल रीति प्रभाकर' नामक एक अन्य पुस्तक का प्रकाशन विक्रम स० 1970 (सन् 1914) मे हुआ था। इस पुस्तक को लाला गुलाबचन्द जी, लाला बुद्धसिह जी पटवारी वरारा तथा लाला निहालचन्द जी ने बनाया और मास्टर कन्हैयालाल जी बी ए एल टी तथा मास्टर मगलसेन जी ने 'शोध वैदिक-यन्त्रालय, अजमेर मे छपवाकर प्रकाशित कराया। इस पुस्तक की भूमिका से पता चलता है कि उस समय समाज मे शिक्षा का अभाव था तथा समाज मे कुरीतियों व्याप्त थी। समाज की उन्नति के उद्देश्य मे ही प्रागरा के बरारा नामक ग्राम मे 'वशोन्नति-मभा' की स्थापना वि स 1967 (सन् 1911 ) में की गई। तदुपरान्त पल्लीवालो के रीति-रिवाजो को समाज में प्रचारित करने के उद्देश्य से उक्त पुस्तक का प्रकाशन किया गया।
पुराने रीति-रिवाजो की अब प्रचलित रीति-रिवाजो से तुलना करने पर पता चलता है कि आज बहुत से व्यर्थ के रिवाजो को समाप्त कर दिया गया है। विभिन्न अवसरो पर मन गढत कुदेवो को पूजना भी बहुत कम हो गया है। घर में किसी के मर जाने पर पहले ब्राह्मणो को खिलाया जाता था तथा समाज को भोज दिया जाता था, लेकिन आजकल मृत्युभोज की कुरीति भी बहुत कम हो गई है।