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संकेत-सूची
प्रक
अनि
-अव्यय (इसका अर्थ= लगाकर लिखा गया है) -अकर्मक क्रिया
-अनियमित प्राज्ञा -आज्ञा कर्म -कर्मवाच्य (क्रिवित्र) --क्रिया विशेषण अव्यय
(इसका अर्थ लगाकर लिखा गया है) -तुलनात्मक विशेषण -पुल्लिग -प्रेरणार्थक क्रिया - भविष्य कृदन्त - भविष्यत्काल -भाववाच्च --भूतकाल --भूतकालिक कृदन्त -वर्तमानकाल -वर्तमान कृदन्त
-विशेषण विधि -विधि विधिक
-विधिकृदन्त
- सर्वनाम सक -सम्बन्धक कृदन्त
-सकर्मक क्रिया
-सर्वनाम विशेषण स्त्री -स्त्रीलिंग हे -हेत्वर्थक कृदन्त
( ) -इस प्रकार के कोष्ठक
मे मूल शब्द रखा गया है। [( )+()+( ) ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर+ चिह्न किन्ही शब्दो मे सधि का द्योतक है । यहाँ अन्दर के कोष्ठको मे दोहे के शब्द ही रख दिए गए है। [( )-( )-( ) ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर '-' चिह्न समास का द्योतक है। [[( )-( )- ( ) वि] जहाँ समस्त पद विशेपण का कार्य करता है, वहाँ इस प्रकार के कोष्ठक का प्रयोग किया गया है। •जहाँ कोष्ठक के बाहर केवल सस्या (जैसे 1/1, 2/1 आदि) ही लिखी है वहाँ उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'सजा' है। 'जहां कर्मवाच्य, कृदन्त आदि अपभ्रश के नियमानुसार नही बने हैं वहाँ कोप्ठक के वाहर 'अनि' भी लिखा गया है ।
वि
६
1/1 अक
या
1/2 अक
या
सक-उत्तम पुरुप।
एकवचन सक-उत्तम पुरुष/
बहुवचन सक-मध्यम पुरुप/
एकवचन
2/1 अक
या
पाहुडदोहा चयनिका ]
[
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