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श्रवधउ
श्रक्खरु जं उप्पज्जइ । अणु विकिपि गाउ रंग किज्जइ ॥ श्राइं चित्ति लिहि मणु धारिवि । सोउ रिणचितिउ पाय पसारिवि ॥
कि बहुए डवड वडिण देह ण अप्पा होइ । देहहं भिण्णउ णाणमउ सो तुहु प्रप्पा जोइ ॥
दयाविहीउ धम्मडा णारिणय कह वि रग जोइ । बहुए सलिलविरोलियइ करु चोप्पडा रग होइ ॥
मल्लारण वि णासति गुण जहं सह संगु खलेहिं । asसारणरु लोहह मिलिउ पिट्टिज्जइ सुघररोह ||
तित्थई तित्थ भमेहि वढ धोयउ चम्मु जलेर । एह मणु किन धोएसि तुहुं मइलउ पावमलेर ||
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जोइय हियडइ जासु ण वि इक्कु रग रिगवसइ देउ । जम्मरणमरणविवज्जियउ किम पावइ परलोउ ॥
जिम लोणु विलिज्जइ पारिणयह तिम जइ चित्तु विलिज्ज । समरसि हूवइ जीवडा काई समाहि करिज्ज ॥
तित्थई तित्य भमंतयह संताविज्जइ अप्पा भाइयइ रिणव्वाणं पउ
अप्पे
देह |
देहु ॥
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